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गुरुवार, दिसंबर 01, 2011

यह प्यार क्या है ?

ब भी प्यार की बात होती है सब लोग सिर्फ एक लड़की और एक लड़के में होने वाले आकर्षण को ही प्यार मान लेते हैं. परन्तु प्यार वो सुखद अनुभूति है जो किसी को देखे बिना भी हो जाती है. एक बाप प्यार करता है अपनी औलाद से, पति करता है पत्नी से, बहन करती है भाई से, यहाँ कौन ऐसा है जो किसी न किसी से प्यार न करता हो. चाहे वह किसी भी रूप में क्यों न हो, प्यार को कुछ सीमित शब्दों में परिभाषित नहीं किया जा सकता.
प्यार फुलों से पूछो जो अपनी खुशबु को बिखेरकर कुछ पाने की चाह नही करता, प्यार क्या है यह धरती से पूछो जो हम सभी को पनाह और आसरा देती है. इसके बदले में कुछ नही लेती, प्यार क्या है आसमान से पूछो जो हमे अहसास दिलाता है कि -हमारे सिर पर किसी का आशीर्वाद भरा हाथ है. प्यार क्या है सूरज की गर्मी से पूछो. प्यार क्या है प्रकृति के हर कण से पूछो  जवाब मिल जायेगा. प्यार क्या है सिर्फ एक अहसास है जो सबके दिलों में धडकता है. प्यार एक ऐसा अहसास है जिसे शब्दों से बताया नहीं जा सकता, आज पूरी  दुनिया प्यार पर ही जिन्दा है, प्यार न हो तो ये जीवन कुछ भी नहीं है. प्यार को शब्दों मैं परिभाषित नहीं किया जा सकता, क्योंकि अलग- 2 रिश्तों के हिसाब से  प्यार की अलग-2 परिभाषा होती है. प्यार की कोई एक परिभाषा देना बहुत मुश्किल है. यदि आपके पास कोई एक परिभाषा हो तो आप बताओ ? 
प्यार की परिभाषा नहीं दी जा सकती है, क्योंकि प्यार को अनुभव तो कर सकते है. लेकिन बता नहीं सकते जैसे-गूंगे को गुड खिला दो तब गूँगा गुड की मिठास को जान जायेगा.मगर उसको अगर पूछो तब वह बता नहीं सकता है. ठीक इसी तरह प्यार है. प्यार का मतलब अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग होता है. इसलिए प्यार को एक परिभाषा में बांधना मुश्किल है. आप प्यार को एक लगाव कह सकते है. एक अशक्ति ही है प्यार. धार्मिक लोग उसे मोह  कहते है. प्यार के बारे शेक्सपियर ने कुछ ऐसा लिखा/कहा था कि Love contains no love.......love lies between 2 legs only. प्यार..... प्यार नहीं होता है प्यार केवल दो पैरों के बीच निहित है.
प्रेम अर्थात प्यार:-प्रेम का सही मायने मे अर्थ सबके प्रति लगाव जो निस्वार्थ भाव से किया गया हो। परमात्मा से प्रेम करना समस्त मानवता से प्रेम करने के जैसा है। सबके प्रति अच्छी दृष्टि रखने से आप सदा प्रेमयुक्त रह सकेंगे। यह आशा मत रखिये कि-दुसरे आप से प्यार करे एवं आप पर ध्यान दे। इसके बजाय आप दूसरो से प्यार करे एवं उनका ध्यान रखे। जब आप दूसरो से प्यार करने लगेंगे तब दुसरे आप से नफरत करना छोड देंगे। शत्रु से छुटकारा पाने का सही उपाय है कि उसे अपना मित्र बना ले। हम जिससे प्रेम करते है हमारा स्वरुप एवं व्यक्तित्व वैसा ही बन जाता है। सबके प्रति समान स्नेह रखने से आप धैर्य का जीवन जी सकते है। जो प्रेम किसी को नुक़सान पहुचाये वह प्रेम है ही नही। जितना प्रेम देंगे उतना प्रेम पाएंगे, जितना प्रेम अधिक होगा उसे देना उतना ही सहज हो जाएगा।
प्यार को समझाना थोडा कठिन है लेकिन इसका सीधा मतलब ये है कि-प्यार जैसी कोई चीज अस्तित्व में है ही नहीं. जिसे हम प्यार कहते है. वो तो एक लगाव ही है. वो एक मोह है. जिसकी वजह से माया, लालच, लोभ जैसे कष्ट पैदा होते हैं. प्यार को अपनापन कह सकते है. वाह! क्या कहने है? किसी ने क्या खूब पक्तियां कही है कि-प्यार एक अहसास है, एक ऐसा एहसास जिसने लाखों लोगों के सपने संजोये, लाखों मुर्दा दिलों को जीने की राह दिखाई....... एक ऐसा एहसास जिसने लाखों लोगों को जीते जी मार दिया, वे ना जी सके और ना ही मर सके, बस एक जिन्दा लाश बनकर रह गए......प्यार जो पूजा भी है...... प्यार जो जिन्दा इंसान की मौत का कारण भी है और उसका कफन भी है... प्यार हरेक के लिए कुछ अलग, कुछ जुदा, कुछ खट्टा और कुछ मीठा है. कुछ लोग मोहब्बत करके हो जाते हैं बर्बाद, कुछ लोग मोहब्बत करके कर देते हैं बर्बाद. 
प्यार के अनेक रूप होते है जैसे-प्यार, प्रेम, आकर्षण, त्याग, बलिदान, तपस्या, दया, सम्मान, विश्वास, अहसास, स्नेह, जिंदगी, सजा, ईनाम, कला, जनून, कलंक, पूजा, कफन, बदनामी, समर्पण, अंधा, सौदर्य, दोस्ती, सच्चाई, मिलन, हवस, डर, वासना, इंसानियत, समाज, ईश्वर, ममता, पागलपन, तकलीफ, मौत, इच्छा, देखभाल, धोखा, नशा, दर्द, समझौता, शहर, मुसीबत, स्वप्न, खतरा, हथिहार, बीमारी, लडूडू, दवा, इबारत, दीवानापन, जिंदगानी, जहर, माता-पिता, जन्नत, मंजिल, हार-जीत, खेल, तन्हाई, जवानी, तोहफ़ा, जादू, नाज-नखरे, उपहार, चमत्कार आदि प्यार के ही कुछ रूप है. प्यार एक आजाद पंछी है. जो पूरे आसमां में स्वतंत्र उड़ता है. जो किसी के रोके रुकता नहीं है. प्यार एक आग का दरिया है जो डूबकर पार किया जाता है. प्यार एक कठिन डगर है जिसपर कोई साहसी ही चल सकता है.
प्यार जितना खुबसूरत शब्द है यह उतना ही इंसान को अच्छा भी बनाता है.प्यार जीना सिखाता है. क्या यह प्यार है? जब आपका आंसू किसी और की आँख में आये. वो प्यार है. प्यार जो हर पल आपका ख्याल रखे वो प्यार है. प्यार जो खुद भूखा रहकर पहले आपको खिलाये वो प्यार है. प्यार जो रात-रात भर जागकर आपको सुलाए वो प्यार है. जो अगर चोट आपको लगे तब दर्द उसको कहूँ या किसी दूसरे को हो वो प्यार है और हम ऐसे प्यार की अहमियत नहीं समझ पाते हैं. प्यार न तो दिल का चैन है, न दिल का रोग. प्यार निभाना उन लोगो के लिए कठिन नहीं है, जो सच्चे दिल से प्यार करते है. प्यार एक अनमोल रत्न है. जिसने इसकी परख कर ली, वो जिन्दगी में हर पल खुश और जो परख न कर पाया वो गम में जीते जी जिन्दा लाश बन जाता है. प्यार क्या है ? क्या जानते है ? कैसे होता है ? कितनी सारी बाते है ? प्यार पूजा है. प्यार भगवान् का ही दूसरा नाम है. करते हम प्यार की बात है, लेकिन प्यार से ही दूर भागते है.
          प्यार, जिंदगी की सबसे बड़ी सजा है और ईनाम भी. बस कर्म सबके अपने-अपने होते है. प्यार किसे सजा के रूप में मिलता है और किसे ईनाम के रूप में.
प्यार कुछ पाने का नाम नहीं-प्यार में सिर्फ दिया जाता है कुछ पाने की भावना रखना प्यार नहीं स्वार्थ ही कहलाता है. अत: प्यार को कोई परिभाषित नहीं कर सकता हैं. प्यार को परिभाषित करना एक असंभव कार्य है, क्योंकि प्यार अनन्त है.

बुधवार, नवंबर 02, 2011

सरकार और उसके अधिकारी सच बोलने वालों को गोली मारना चाहते हैं.

दोस्तों, आज सरकार(चाहे वो किसी भी दल की हो) और उसके अधिकारी सच बोलने वालों को गोली मारना चाहते हैं.आज जो भी सरकार ओछी नीतियों और भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाएगा. उसको और उसके साथियों का इतना शोषित किया जाएगा कि वो खुद ही आत्महत्या कर लेगा या वो देशहित और समाजहित की बात छोड़कर चुपचाप बैठ जाएगा.जब-जब किसी व्यक्ति ने अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने की कोशिश की है. तब सरकार व उसके अधिकारी उसको इतना शोषित करते हैं.जोकि उसका शोषण होते देखकर कोई दूसरा भी ओछी नीतियों और भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत ना करें.अगर कोई ज्यादा ही चर्चित व्यक्ति हो तो बात दूसरी है. वरना छोटे-मोटे व्यक्ति को मरवा दिया जाता है.फिर जांच के नाम पर सरकारी अधिकारी ढोंग करते हैं और बड़े-बड़े बिलों में खर्चें देखाकर अपनी जेब भरते हैं. चर्चित व्यक्तियों के किसी दबे हुए मामले को गड़े हुए मुर्दे की तरह से उखाड़कर शोषित किया जाता है. आज आपके सामने बाबा रामदेव और श्री अन्ना हजारे जी के उदाहरण आपके सामने है.
         दोस्तों, मैं आज अपना व्रत खोलकर नाई के पास अपना सिर मुड़वाने (पत्नी व सुसराल वालों द्वारा फर्जी केसों के विरोध में) के लिए बैठा था. तभी मेरे मोबाईल पर एक फोन आया कि मैं नाथू सिंह उत्तम नगर थाने से बोल रहा हूँ. आपका सम्मन आया हुआ है. पूछताछ करने पर ज्ञात हुआ कि द्वारका कोर्ट से आया था. 
        दोस्तों, मैंने जानकारी प्राप्त होने पर द्वारका कोर्ट से अपनी पत्नी से क्रूरता और परित्याग के आधार पर तलाक लेने के लिए लीगल सैल(उपरोक्त संस्था गरीब व्यक्तियों को वकील देती है) से वकील देने का आवेदन किया था. काफी परेशानियों के बाद वकील मिला. फिर वकील ने काफी परेशान किया और पूरा केस की जानकारी ले ली. इससे पुरानी बातें याद करके बताने से मैं काफी दिनों तक बीमार भी हो गया.लगभग बीस-पच्चीस दिनों के बाद वकील ने कहा कि-मैंने लीगल सैल के पैनल से इस्तीफा दे दिया है. एक-दो दिन मैं लीगल सैल में तुम्हारी रिपोर्ट बनाकर दे दूँगा कि मैंने रमेश कुमार जैन का केस नहीं डाला है. उसके बाद आपको दूसरा वकील मिल जायेगा. मैं जब रिपोर्ट दूँगा तब फोन करके बता दूँगा. फिर एक दो दिन बाद फोन आया कि मेरा इस्तीफा मंजूर अभी नहीं हुआ है और कोर्ट की गर्मियों की छुट्टी पड़ गई. उसके बाद मैं फोन करके बताऊंगा. तब लीगल सैल में आना. मेरी अक्सर तबीयत खराब रहती थी और काफी समय से डिप्रेशन होने के कारण फोन नं. भी रखकर भूल गया था.
मुझे आज उत्तम नगर 
थाने के द्वारा मिला पत्र
फिर एक दिन मुझे उनका फोन नं. मिला फोन किया मगर उठाया नहीं गया. काफी समय के बाद फोन आया. तब मैंने कहा आपको अगर केस नहीं करना था तब आपने मेरा समय भी क्यों खराब किया और आपने पैनल से इस्तीफा भी नहीं दिया है. तब उस वकील ने कई अपमानजनक बात कही. उस घटना के बाद मैंने तलाक का केस डालने का विचार त्याग दिया, क्योंकि बीमारी का शरीर होने और आर्थिक रूप से बिल्कुल टूट जाने के बाद मेरी हिम्मत ने जवाब दे दिया था.थोड़ी बहुत मानसिक शांति के लिए जैन धर्म की तपस्या में लीन होने का प्रयास किया. फिर मुझे पहली बार सात सितम्बर को दोपहर तीन बजे एक पत्र मिला. जो अंग्रेजी में होने के कारण समझ नहीं आया. उसके बाद भी अनेक पत्र आये.मैंने किसी व्यक्ति से उसको पढवाया तब पता चला कि उस वकील ने मेरे खिलाफ कोई शिकायत की हुई है.जो मुझे समझ नहीं आई. फिर मैंने 19 अक्टूबर 2011 को ईमेल भेजकर अपना पक्ष रख दिया था.लेकिन उसके बाद मुझे आज उत्तम नगर थाने के द्वारा पत्र संदर्भ नं. 418/2011/DLSA/Dwk/4643मिला है.जिसमें नौ नवम्बर को बुलाया गया है. मैंने अपना पक्ष ईमेल से जो रखा था. उस ईमेल को यहाँ प्रकाशित कर रहा हूँ. इसको पढकर काफी स्थिति आपको समझ में आ जायेगी.मैं अपने ऊपर हुए अत्याचार के सन्दर्भ में राष्ट्रपति और दिल्ली हाईकोर्ट में भी "इच्छा मृत्यु" देने के लिए पत्र लिख चूका हूँ. जिनको ऊपर लिखे राष्ट्रपति और दिल्ली हाईकोर्ट पर क्लिक करके देखा जा सकता है.आज पांच महीने हो चुके है. कोई जबाब नहीं आया. एक गरीब कहाँ से लाये "इन्साफ" पाने के लिए वकीलों की मोटी-मोटी फ़ीस ? गरीब ऐसे ही घुट-घुटकर मरते हैं. आज भी तबियत खराब होने के कारण और मानसिक परेशानी के कारण अपनी पूरी बात सही नहीं लिख पा रहा हूँ. इसलिए अपनी ईमेल को यहाँ प्रकाशित कर रहा हूँ.

रमेश कुमार जैन उर्फ सिरफिरा sirfiraa@gmail.com को dlscdwarka@gmail.com 
दिनांक १९ अक्तूबर २०११ ११:४१ अपराह्न 
विषय-मैं आपके पास आने में असमर्थ हूँ. इसके द्वारा मेल किया गया gmail.com 
  
सेवा में,
श्रीमान मोहिंदर विरत जी,Secretary/DLSA-SW
SOUTH WEST DISTRICT LEGAL SERVICESS AUTHORITY, Administrative Block, Gr. Floor, Dwarka Court Complex, New Delhi.

विषय:-आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण मैं आपके पास आने में असमर्थ हूँ और बार-बार पत्र भेजकर शोषित ना किया जाए हेतु प्रार्थना पत्र. जब मुझे इंसाफ नहीं दिलवा सकते हैं तब कम से कम मुझे परेशान ना किया जाए.

        मान्यवर महोदय जी, मेरे पास मेरी फ़ाइल नं. 418/2011/DLSA/Dwk के संदर्भ में आपके यहाँ से संदर्भ नं. 418/2011/DLSA/Dwk/3769, 418/2011/DLSA/Dwk/4029, 418/2011/DLSA/Dwk/4071 & 418/2011/DLSA/Dwk/4305 जोकि मुझे दिन में तीन बजे क्रमश सात सितम्बर, सोलह सितम्बर, उन्नीस सितम्बर और चार अक्टूबर को मिले. जिसमें मुझे दिन 12 बजे क्रमश सात सितम्बर, पंदह सितम्बर, अठाईस सितम्बर और बीस अक्टूबर को बुलाया गया है. इन पत्रों के संदर्भ में यह ही कहना है कि पहले छह साल तक मेरी पत्नी और ससुराल वालों ने मेरा शोषण किया और मुझे झूठे केसों में फंसाकर बर्बाद कर दिया. फिर गरीब होने की स्थिति में लीगल सैल वकील लिया, यह मेरा सबसे बड़ा कसूर है. जहाँ सिर्फ शोषण के कुछ नहीं मिला.मैंने जब आपके पास आवेदन किया था. तब थोड़ी-सी उम्मीद थीं, मगर आपके यहाँ से मिले वकील द्वारा शोषित किये जाने पर "न्याय" उम्मीद भी छोड़ दी है, क्योंकि आपके यहाँ के नहीं हर अदालत के लीगल सैल से मिले वकील सिर्फ शोषित करने के सिवाय कुछ नहीं करते हैं. इनकी शिकायत करो तो कार्यवाही आप लोग करते ही नहीं है. बल्कि मुझे या पीड़ित को शोषित करना शुरू कर देते है, क्योंकि यह वकील होते हैं पीड़ित गरीब और एक आम आदमी होता है. मुझे आपके पत्रों में कुछ भी समझ नहीं आता है, क्योंकि वो अंग्रेजी में होते है. आप मेरे आवेदन फॉर्म और शपथ पत्र को देख सकते हैं, वो हिंदी में है. मैं पहले थोड़ा बहुत कमा लेता था. मगर अब मई से बिल्कुल बेरोजगार बैठा हूँ. मेरे पास आपके यहाँ आने के लिये "किराया" भी नहीं है. मुझे किसी ने आपका पत्र पढकर सुना है जहाँ तक वकील प्रदीप कुमार सिंह ने मेरे खिलाफ जो शिकायत की है. वो मुझे अंग्रेजी में होने के कारण समझ में नहीं आई. अगर हिंदी में होती तो कुछ समझ जाता और उसका कोई जवाब भी दे देता. वकील प्रदीप कुमार सिंह के बारें में इतना ही कहूँगा कि उल्टा चोर कोतवाल को डांटे वाली कहावत को चरितार्थ कर रहे है, क्योंकि उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता है. एक ईमानदार पत्रकार को जब अपमानित किया जाता है और उसे ब्लैकमेलर कहा जाता है. तब आम आदमी को कितना शोषित करते होंगे. इन दिनों मेरी जैन धर्म की तपस्या चल रही है. मेरा कल भी बिना पानी पिए का उत्तम नगर की जैन स्थानक में व्रत है. बेशक आप इस पते टी-239-240, जैन स्थानक उत्तम नगर (नजदीक परमपुरी चौंक) पर आकर देख लें. अगर आपके अंदर हिम्मत, इंसानियत और ईमानदारी है. तब मेरे पास आये और मेरी बात सुने. इसके साथ ही वकील प्रदीप कुमार सिंह की शिकायत हिंदी में लिखवाकर भेजें तब उस शिकायत पर अपना स्पष्टीकरण दें सकता हूँ और मुझे बार-बार पत्र भेजकर शोषित नहीं किया जाए. अगर आप लोगों ने मुझे ज्यादा परेशान किया तो मैं आत्महत्या कर लूँगा. मुझे नहीं चाहिए लीगल सैल से शोषित करने वाले वकील. हमारे देश में गरीबों को इन्साफ देने वाली अदालतें ना तो आज तक बनी है और ना भविष्य बनने की उम्मीद नज़र आ रही है. मैं आपसे पूछता हूँ कि आपके पास आने के लिये किराये हेतु क्या किसी का गला काटूं या किसी बैंक में डैकेती डालूं या आंतकवादियों के लिये विस्फोट करने की साजिश को अंजाम देने के लिये द्वारका कोर्ट या अन्य किसी कोर्ट आदि स्थानों की रेकी करके दूँ. मैं आपकी ईमानदारी को खुली चुनौती देता हूँ कि अगर आपके दिल और आत्मा के किसी कोने में "इंसानियत" नाम की कोई चीज है. तब आप मेरे पास आये और लीगल सैल के वकीलों की कार्यशैली जीता-जागता सबूत देखें. अब मुझे कोई "तलाक" का कोई केस नहीं डालना है. आपसे अनुरोध है कि मेरी फ़ाइल बंद कर दीजिए, क्योंकि लीगल सैल के वकीलों से अपमानित होने से अच्छा है. झूठे केसों की सजा काटना या थोड़े दिनों आत्महत्या कर लेना ज्यादा अच्छा है. इन्साफ देना अब अदालतों की बस की बात नहीं रही.यह अमीरों के बड़े-बड़े वकीलों के तर्क सुन सकती हैं. गरीबों के लिये वकील इंसाफ की लड़ाई के लिये रिश्वत मांगते हैं या केस कमजोर करने की धमकी देते हैं या अन्य कई तरीकों से शोषित करते हैं. मेरी बात पर विश्वास नहीं हो रहा है. तब आप इस लिंक को पढकर देखें.मेरी शिकायत उनकी ईमानदारी पर एक प्रश्नचिन्ह है.-- रमेश कुमार जैन.

   

मंगलवार, नवंबर 01, 2011

मेरी लम्बी जुल्फों का कल "नाई" मालिक होगा.

मेरी इन लम्बी-लम्बी जुल्फों का कल "नाई" मलिक होगा. मैं कल दो नवम्बर 2011 को अपने ऊपर पत्नी व सुसराल वालों द्वारा फर्जी केसों के विरोध में मुंडन करवा रहा हूँ. आपको कल मेरी एक नई फोटो देखने को मिलेगी. जो हास्य से परिपूर्ण होगी और एक अच्छा संदेश भी देंगी. आज मेरा जैन धर्म का अंतिम व्रत है. जैसा आपको याद होगा कि मेरी तपस्या 20 मई 2011 से शुरू हुई थी. आप सभी दोस्तों की दुआओं से मुझे अपनी तपस्या को पूर्ण करने में बहुत मदद मिली. उसके लिए आप सब का तहे दिल से आभारी हूँ. आपकी दुआ से मेरी यह तपस्या हो सकी है. मैंने तपस्या के दौरान  29 दिन लगातार अन्न ग्रहण नहीं किया, 11 एकासने, 2 अमल, एक तेला, दो बेले, दो पौषध, दो बिना जल पिए ही पौषध, दो पौषध केवल रात-रात के, दो दिन छोड़कर हर तीसरे दिन केवल जल पीकर किये जाने वाले 38 लगातार उपवास के साथ ही अनेकों नवकारसी और पहरपोर्शी आदि. इससे ज्यादा जानकारी इस ब्लॉग की अनेक पोस्टों में है.
 
 जैन धर्म के नमोकार मंत्र का जप करते हुए का चित्र. जिसको मेरे भतीजे कार्तिक जैन ने अचानक ले लिया था. इसकी जानकारी मुझे काफी समय के बाद हुई.

शनिवार, सितंबर 24, 2011

भगवान महावीर स्वामी की शरण में गया हूँ


दोस्तों,शायद आपको सनद होगा कि मैंने अपनी एक पोस्ट "प्यार करने वाले जीते हैं शान से, मरते हैं शान से" में कहा था. अब मेरे जीवन की आखिर लड़ाई जीवन और मौत के बीच होगी. उसी के अंतर्गत मेरी जैन धर्म की इन दिनों तपस्या चल रही है. 
मेरा कल 20 तारीख को फिर जैन धर्म का उपवास है. जो मैंने थोड़ा ओर कठिन करने का निर्णय किया है. अब तक जल पीकर व्रत कर रहा था. मगर कल का बिना जल भी पिए करने की कोशिश है. जोकि अपने यहाँ की जैन स्थानक में "पौषध" के रूप में होगी. इसलिए आपसे अब परसों यानि 21 तारीख को आपसे वार्तालाप होगी और टिप्पणी करूँगा. वैसे मेरे काफी दिन से उपवास चल रहे हैं, 17 को था अब 20 को फिर 23 को इसी तरह से 26,29, को भी है, इसी क्रम से चलती हुई तपस्या एक नवम्बर को खत्म होगी. अब तक 23 व्रतों की जैन धर्म की तपस्या हो चुकी है. इसके साथ ही और भी बहुत सी तपस्या कर चुका हूँ. मेरे इन दिनों कुछ अच्छे हालात नहीं चल रहे है. इसलिए सब जगह से निराश होने के बाद भगवान महावीर स्वामी की शरण में गया हूँ.
दोस्तों और जैन गुरुओं की कृपया से 20 सितम्बर को पौषध के साथ ही एक पहर पोरसी भी बिना जल पिए करते हुए 40 घंटे का उपवास सही से संपन्न हो गया है और सभी प्रकार की सुख सहायता है. आप सभी का सहयोग और दुआओं का लाभ देने के लिए आपका धन्यवाद करते हुए साधुवाद प्रणाम करता हूँ. और कल के जल पीकर उपवास के साथ ही (सूर्य अस्त के बाद से लेकर सुबह 10 बजे तक) एक पहर "पोरसी" भी बिना जल पिए करते हुए 17 घंटे का उपवास सही से संपन्न हो गया है और सभी प्रकार की सुख सहायता है.
दोस्तों और जैन गुरुओं की कृपया से कल यानि 23 सितम्बर के जल पीकर उपवास के साथ ही (सूर्य अस्त के बाद से लेकर आज सुबह 10 बजे तक पौषध और एक पहर "पोरसी" भी बिना जल पिए करते हुए) 17 घंटे का उपवास सही से संपन्न हो गया है और सभी प्रकार की सुख सहायता है.आप सभी का सहयोग और दुआओं का लाभ देने के लिए आपका धन्यवाद करते हुए साधुवाद प्रणाम करता हूँ.
    दोस्तों और गुरुओं की कृपया से कल यानि 26 सितम्बर के जल पीकर उपवास के साथ ही (सूर्य उदय होने के बाद से दो पहर "पौरसी" और सूर्य अस्त के बाद से लेकर आज सुबह 8 बजे तक पौषध और दो "नवकारसी" भी बिना जल पिए करते हुए) 14 घंटे का उपवास सही से संपन्न हो गया है और सभी प्रकार की सुख सहायता है.आप सभी का सहयोग और दुआओं का लाभ देने के लिए आपका धन्यवाद करते हुए साधुवाद प्रणाम करता हूँ.
     दोस्तों! एक मित्र ने जानना चाहा हैं कि आप जैन धर्म के उपवास की प्रक्रिया को संक्षिप्त में बताये. जैन धर्म में रखे जाने वाले लगभग सभी व्रतों(उपवास-जो कई प्रकार के होते हैं. जैसे-एकासना, अम्बल, निर्जल उपवास, पौषध आदि) में जिस दिन उपवास करना है. तब उससे पहले दिन के सूर्य अस्त होने के बाद से ही कुछ भी खाना-पीना नहीं होता है. इसके लिए एक मेरा उदाहरण(जिससे समझने में आसानी हो) देखें:-मैंने 25 सितम्बर के सूर्य अस्त (छह बजे)  के बाद पानी तक नहीं पिया. फिर 26 सितम्बर को सूर्य उदय होने के बाद ही उबालकर ठंडा किया हुआ पानी पीना होता है. जोकि मैंने दो पहर "पौरसी" करते हुए लगभग साढ़े बारह बजे के बाद पिया. उसके बाद सूर्य अस्त होने के कुछ मिनट पहले से पौषध होने के कारण जैन स्थानक में चला गया था और पौषध के नियमों का पालन किया और बिना पानी पिए ही सुबह साढ़े सात बजे तक जैन स्थानक में रहा. फिर वहाँ से चलने के बाद घर आकर व्रत का "पालना" (व्रत खोलने की प्रक्रिया को कहा जाता है) किया. मैंने 27 सितम्बर  को सुबह उठते ही सूर्य उदय होते ही दो "नवकारसी" की प्रतिज्ञा ले ली थी. नोट: एक "नवकारसी" 48 मिनट की होती हैं और एक पहर "पौरसी" लगभग तीन घंटे का होता हैं. वैसे यह समय थोड़ा-बहुत ऊपर नीचे होता रहता है, क्योंकि उस दिन जितने घंटे का दिन होता है, उसको चार से भाग करने पर आने वाले समय की एक पहर पौरसी होती हैं. जैसे-13 घंटे भाग 4 = 3 घंटे :15मिनट 

शनिवार, जून 18, 2011

मैं खाली हाथ आया और खाली हाथ लौट जाऊँगा

आज से 26 साल पहले 31 जनवरी 1985 को मेरी सबसे बड़ी बहन शकुंतला जैन को ससुराल वालों ने जलाकर मार दिया था.तब भी पुलिस ने रिश्वत लेकर या सिफारिश के कारण मेरे अनपढ़ माता-पिता से कोरे कागजों पर अंगूठे लगवाकर अपनी मर्जी का रिपोर्ट में लिखकर ससुरालियों की मदद की थी और 16 मार्च 2008 की रात लगभग 11:30 बजे जब मेरे बड़े भाई पवन कुमार जैन के साथ अज्ञात व्यक्तियों ने लूटमार की. तब से आजतक उसकी एफ.आई.आर दर्ज नहीं की.फ़िलहाल मेरे ऊपर धारा 498अ व 406 के तहत थाना मोतीनगर में एक झूठी एफ.आई.आर.नं-138/10 दर्ज कर रखी है और दिल्ली पुलिस की कार्यशैली ने आज हमारे परिवार को बर्बादी की कगार पर पहुंचा दिया है.दिल्ली पुलिस ने हमारे परिवार के ऊपर हमेशा बहुत अन्याय किया है. मैं आपसे पत्र के माध्यम से वादा करता हूँ की अगर न्याय प्रक्रिया मेरा साथ देती है तब कम से कम 551लाख रूपये का राजस्व का सरकार को फायदा करवा सकता हूँ. मुझे किसी प्रकार का कोई ईनाम भी नहीं चाहिए. मैं खाली हाथ आया और खाली हाथ लौट जाऊँगा. ऐसा ही एक पत्र दिल्ली के उच्च न्यायालय में लिखकर भेजा है. ज्यादा पढ़ने के लिए नीचे किल्क करके पढ़ें.

सोमवार, जून 13, 2011

कोई खाकी वर्दी वाला मेरे मृतक शरीर को न छूने की कोशिश भी न करें

दिल्ली पुलिस का कोई सादी या खाकी वर्दी वाला मेरे मृतक शरीर को न छूने की कोशिश भी न करें. मैं नहीं मानता कि-तुम मेरे मृतक शरीर को छूने के भी लायक हो. आप भी उपरोक्त पत्र पढ़कर जाने की क्यों नहीं हैं पुलिस के अधिकारी मेरे मृतक शरीर को छूने के लायक? अपनी अमानत ले जाओ अब मैं उसकी रक्षा करने में असमर्थ हूँ. 

रविवार, जून 12, 2011

मैंने पत्नी की जो मानसिक यातनाएं भुगती हैं

मेरी पत्नी और सुसराल वालों ने महिलाओं के हितों के लिए बनाये कानूनों का दुरपयोग करते हुए मेरे ऊपर फर्जी केस दर्ज करवा दिए. इससे  मेरी परेशानियों में बढ़ोतरी हुई. थोड़ी बहुत पूंजी अपने कार्यों के माध्यम जमा की थी. सभी कार्य बंद होने के, बिमारियों की दवाइयों में और केसों की भागदौड़ में खर्च होने के कारण आज स्थिति यह है कि-पत्रकार हूँ कुछ कानूनों की जानकारी रखता हूँ. इसलिए भीख भी नहीं मांग सकता हूँ और अपना ज़मीर व ईमान बेच नहीं सकता हूँ. अत: कल ही मैंने कल ही राष्ट्रपति से इच्छा मुत्यु प्रदान करने की मांग की हैं. अपना घर बसाने के लिए मैंने अपनी पत्नी के बहुत अत्याचार सहे. शायद उसमें कोई सुधार आ जाए. मगर सुधार आने की वजय बल्कि उसका व्यवहार और ज्यादा क्रूर होता गया. मैंने अपनी पत्नी द्वारा दी जो मानसिक यातनाएं भुगती हैं. उनको कल ही दिल्ली पुलिस कमिश्नर श्री बी.के. गुप्ता और दिल्ली हाई कोर्ट के श्री दीपक मिश्रा जी को एक पत्र में लिखकर भेजा है. शायद कोई उच्च पद पर बैठा अधिकारी मेरी ईमानदारी और विश्वास करें. अगर उनके दिल के किसी कोने में इंसानियत बची होगी तो शायद मुझे इन्साफ मिल जाए.  

शनिवार, जून 11, 2011

माननीय राष्ट्रपति जी मुझे इच्छा मृत्यु प्रदान करके कृतार्थ करें

 कदम-कदम पर भ्रष्टाचार ने अब मेरी जीने 
की इच्छा खत्म कर दी है-सिरफिरा 
मेरा मानना है कि जिंदगी की सबसे बड़ी शर्त है स्वस्थ तन और निर्मल मन.हमारी जिम्मेदारी तन को तन्दुरुस्त रखना तो है ही साथ ही हमारी निरंतर कोशिश मन को भी सारे प्रदूषण से बचाने की हो.प्रदूषित मन का होना स्वस्थ तन से समझौता करना है. जब कोई भी शरीर इस हालत मैं पहुँच गया हो कि उसका जीर्णोंध्दार नहीं हो सकता है तब उसे त्यागने में हर्ज नहीं है. जिंदगी जीने की जिन्दा दिली मैं इतनी ताकत हो कि वह मौत से भी न डरे. इन दिनों मेरा मन और तन सही नहीं रहता है, क्योंकि जो समय समाज और देशहित मैं चिंतन करते हुए कार्य करता था वो ऐसी परेशानियों मैं फंसा हुआ है. जहाँ से एक ईमानदार और सभ्य व्यक्ति निकलना आसान नहीं होता है. जब पूरा भारत देश का हर विभाग भ्रष्टाचार से ग्रस्त हो. तब मुशिकलों का कम होना जल्दी संभव नहीं होता है. अत: मैंने जो भी कदम उठाया है. वो सब मज़बूरी मैं लिया गया निर्णय है. हो सकता कुछ लोगों को यह पसंद न आये लेकिन जिस पर बीत रही होती हैं उसको ही पता होता है कि किस पीड़ा से गुजर रहा है. कहते हैं वो करो, जो मन को अच्छा लगे और उससे किसी का अहित न हो.   
                                                          

शुक्रवार, अप्रैल 29, 2011

प्यार करने वाले जीते हैं शान से, मरते हैं शान से

दोस्तों, आज 23 अप्रैल को अपनी पत्नी को भेजी ईमेल प्रकाशित कर रहा हूँ. मेरे हालतों के सुसराल के अलावा कुछ लोग भी जिम्मेदार है.जिनका बहुत जल्द उनके नाम भी सार्वजनिक कर दूंगा,क्योंकि रिश्वत लेने वालों का सार्वजनिक नाम करने से मेरी जान को और भी खतरे हो जायेंगे. जब आज यह हालत है कि-न जिंदा हूँ और न मौत आ रही है.तब कम से कुछ लोगों का नाम बताने में कोई हर्ज नहीं है.जिन्होंने मात्र रिश्वत और अपनी कार्यशैली के कारण मेरे लिए ऐसे हालत पैदा कर दिए हैं. आज रिश्वत लेने वालों के खिलाफ सर पर कफन बाँध कर लड़ने की जरूरत है. आज की पोस्ट में न्याय व्यवस्था और वकीलों की गिरती नैतिकता के सन्दर्भ में अपने केस की जज के नाम खुला पत्र भी संलग्न है. जो कोरियर की मदद से मैंने 27 अप्रैल को भेजा था क्योंकि 28 अप्रैल को कोर्ट में मेरी पेशी थीं. मगर डिप्रेशन की बीमारी के चलते पहुँच नहीं सकता था. आप से निवेदन है उपरोक्त पत्र एक बार जरुर पढ़ें और क्या मैंने उपरोक्त पत्र लिखकर कोई गलती की है.  
सच्चा प्यार करने वाले जीते हैं 
शान से और मरते हैं शान से
20 अप्रैल 2011 के बाद जो कदम उठाऊंगा वो सब मज़बूरी में उठाया गया कदम होगा. चाहे वो 20 मई 2011 से अन्न का त्याग हो या 20 जून 2011 से फलों (कुटू का आटा, चिप्स, सामक के चावल आदि) और विशुध्द जल (चाय, कोफ़ी और दूध आदि) का त्याग हो यानि "जैन" धर्म की तपस्या या  "संथारा*" हो. अगर 29 जुलाई 2011 तक जीवित बचा तो खुद को पुलिस को सौंपना हो.सच्चा प्यार करने वाले जीते है शान से और मरते हैं शान से. अगर फिर भी जीवित बचा और भाईयों ने मेरा साथ देने से इंकार किया. तब 20 अक्तूबर 2011 को "संसारिक जीवन" का त्याग करना. यह सब कार्य मज़बूरीवश ही करूँगा. आज भी अपनी 10 मई 2009 की बात पर अटल हूँ कि-आज अगर तुम मुझे ठुकराकर गई तो जिदंगी-भर कभी अपनी शर्तों पर हासिल नहीं कर पायोंगी. मेरी शर्तों पर तुम कभी भी मेरे साथ रह सकती हो और मगर जब मैं चाहूँगा तब ही हमारा जरुर "पुर्नमिलन" होगा. शायद तुमको याद हो.
 *नोट : संथारा ग्रहण करने वाला व्यक्ति अपनी मृत्यु होने तक अपने मुंह से अन्न और जल नहीं लेता है. संसारिक जीवन का त्याग-जैन साधू बन जाना.
 

शुक्रवार, अप्रैल 22, 2011

मेरी आखिरी लड़ाई जीवन और मौत की बीच होगी.

 दोस्तों, आज 20 अप्रैल को अपनी पत्नी को भेजी ईमेल प्रकाशित कर रहा हूँ. अब मेरी जिदंगी के शायद थोड़े ही दिन बचे हुए है, क्योंकि मुझे इतना गहरा सदमा लगा है. चाहकर भी उबर नहीं  पा रहा  हूँ .मेरा शरीर अब एक चलती-फिरती जिंदा लाश बनकर रह गया है.खाने को मन नहीं करता है और कभी- कभी थोड़ा बहुत हलक से जबरदस्ती उतर भी लेता हूँ. मेरे हालतों के सुसराल के अलावा कुछ लोग भी जिम्मेदार है.जिनका बहुत जल्द उनके नाम भी सार्वजनिक कर दूंगा,क्योंकि रिश्वत लेने वालों का सार्वजनिक नाम करने से मेरी जान को और भी खतरे हो जायेंगे. जब आज यह हालत है कि-न जिंदा हूँ और न मौत आ रही है.तब कम से कुछ लोगों का नाम बताने में कोई हर्ज नहीं है.जिन्होंने मात्र रिश्वत और अपनी कार्यशैली के कारण मेरे लिए ऐसे हालत पैदा कर दिए हैं.
 अब मेरी आखिरी लड़ाई जीवन 
और मौत की बीच होगी
नमीषा* जी, आज आपको अपने पति का घर को छोड़े हुए पूरे दो साल हो चुके हैं. इन दो सालों में आपने हर वो कार्य किया, जो एक सभ्य लड़की नहीं करती हैं. मेरे अधिकारों का हनन किया. मेरे साथ ही मेरे परिवार की महिलाओं पर और पुरुषों पर झूठे व गंदे आरोप लगाकर लगाकर अपमानित किया. इन दो सालों में क्या हासिल किया आपने. सिर्फ परमपिता परमेश्वर की नजरों में बुरी बनने के सिवाय क्या प्राप्त कर लिया आपने? 
  आज 20/04/2011 से मैं अपने अधिकारों की लड़ाई के लिए जो क़ानूनी लड़ाई लडूंगा. उसके अंजाम की तुम खुद जिम्मेदार होगी. आपने ही यह क़ानूनी लड़ाई की शुरूयात की है. आपकी लड़ाई में और मेरी लड़ाई में सिर्फ इतना फर्क होगा. तुमने हर जगह झूठ का सहारा लेकर केस दर्ज करवाए है. मैं अपनी लड़ाई में ठोस सबूतों के साथ ही कडुवा सच न्यायलय और समाज में दिखाऊंगा.
          मैं अपनी क़ानूनी लड़ाई में आपको किसी प्रकार की शारीरिक चोट नहीं पहुँचाऊगा. मगर आप व आपके पिता और जीजा मोहित कपूर को पूरी छूट है. चाहे अपने मामा के लड़कों से गोली मरवा देना या आपके पापा अपने क्राइम बांच के ए.सी.पी दोस्त से मेरा फर्जी इनकाउन्टर करवाए या आपके जीजा मुझे जान से मरवाए या मेरे ऑफिस में आग लगवाए. बाकी........वो सब जिसकी अक्सर तुम धमकी देती थीं. मुझे शारीरिक चोट पहुँचाने के लिए सब चीजों की पूरी छुट है. 
              एक बात का बस धयान रखना मुझे कभी भी कुछ हो जाने पर भी मेरे मृतक शरीर को हाथ भी मत लगाना. अब जो क़ानूनी लड़ाई(सच्चाई के साथ) लडूंगा, उसमें अपनी जान की बाजी लगा दूंगा. अगर तुम्हारी व तुम्हारे माता-पिता की पैसों की हवस है. तब मेरा मृतक शरीर बेच लेना. 19 व 26 अप्रैल 2010 को कीर्ति नगर थाने की वोमंस सैल में कर्ज पर लेकर 1.25 लाख रूपये सिर्फ बच्चे के भविष्य को देखते हुए दे रहा था. आपने मेरा कैरियर को चौपट कर ही दिया है. अब सिर्फ झूठ और सच की लड़ाई रह गई है. आज ज्यादा कुछ कहने को मेरे पास नहीं हैं. 
                        अगर तुम इतनी सच्ची हो तो क्या "आपकी कचहरी" (किरन बेदी का कार्यक्रम) में आ सकती हो या मीडिया और समाज के सामने स्वस्थ बहस कर सकती हो और अपने नार्को विश्लेषण, ब्रैन मैपिंग या पोलीग्राफ जाँच करवा सकती हो? मैं सच्चाई को उजागर करने के उपरोक्त सभी जांचों को करवाने के लिए तैयार हूँ. लोगों को भी पता चल जायेगा कौन सच्चा है और कौन झूठा है? दूध का दूध और पानी का पानी भी हो जायेगा. किसने किसके ऊपर कितने अत्याचार किये हैं? 
            हर एक सभ्य व्यक्ति की देश और समाजहित में अत्याचार की सजा दिलवाने की नैतिक जिम्मेदारी होती हैं. कभी भी एक सभ्य व्यक्ति कानूनों का दुरूपयोग नहीं करता है. बल्कि उनका पालन करता है. आप किसी के मात्र कह देने से या सीखा देने से कैसे झूठा केस दर्ज करवाने के लिए तैयार हो गई? यह मुझे समझ नहीं आता है. आप(एम्.बी.ए) तो मुझसे(मैट्रिक) ज्यादा पढ़ी-लिखी थीं. आपके शब्दों में "अनपढ़ और ग्वार" था. फिर आप एक के बाद एक गलती क्यों करती रही? काफी बातें जो कहना चाहता था 18 अप्रैल 2011 को आपके आये फ़ोन की बातचीत में कह और समझा चूका हूँ. 
                  अगर तुमको किसी निर्दोष के जेल में जाने के बाद ही संतुष्टि मिलती हैं. तब अगर मैं 29 जुलाई 2011 तक जीवित बचा तो स्वंय पुलिस को सौंप दूंगा. 
                 अब तुम राष्ट्रपति, सी.बी.आई, सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के साथ ही समाज और मीडिया में दिखाने के लिए FIR में लगाये सभी आरोपों के सबूतों को और अपनी वो अश्लील फोटो और वीडियों तैयार कर लो जिनका तुमने मेरे ऊपर झूठा इल्जाम(बनाने का) लगाया है. तुम कहती थी कि-यू.पी के बदमाशों से पांच हजार रूपये में तुमको मरवाया जा सकता है. तब किस बात की देर कर रही हो? 
         आज मैं यह सार्वजनिक घोषणा कर रहा हूँ. आज के बाद मेरी किसी दुर्घटना में या किसी भी तरीके से अगर मौत होती है. उसकी संपूर्ण रूप से मेरी पत्नी, सास-सुसर, दोनों सालियाँ और मेरे साले के साथ ही मोहित कपूर (साली का पति) और उसके परिवार के सदस्यों की जिम्मेदारी होगी, क्योंकि मेरे जीवन के सिर्फ यहीं लोग दुश्मन है. अब मेरी आखिरी लड़ाई जीवन और मौत की बीच होगी. जिसकी सूचनाएं तुमको मीडिया द्वारा मिलती रहेंगी.*नोट: नमीषा एक बदला हुआ नाम है.

बुधवार, अप्रैल 13, 2011

मैंने अपनी माँ का बहुत दिल दुखाया है

.दोस्तों, मेरी पत्नी का मोबाईल पर संदेश आने के बाद अपने छोटे से बच्चे के भविष्य को देखते हुए ईमेल और कभी-कभी पत्नी के आये फ़ोन पर बहुत समझाने की कोशिश की. मगर दूसरों की "सीख" और बहकाने के साथ ही कानों की कच्ची होने के कारण अपने साथ-साथ दो साल और तीन महीने के बच्चे का भविष्य चौपड़ कर रही है. मेरा कैरियर तो बर्बाद कर ही दिया है. मैंने एक छोटी-सी गलती की कितनी बड़ी सजा पाई है. आप मेरी पत्नी  नमीषा* को 7 फरवरी 2011 को भेजी ईमेल पढ़कर ज्ञात कर सकते हैं. मेरे सारे ख्याबों को कैसे एक दूषित मानसिकता वाली लड़की ने चकनाचूर कर दिया? जीवन के आज ऐसे दोहरे पर खड़ा हूँ. जहाँ एक तरफ कुआं है और दूसरी तरफ खाई. न जी रहा हूँ और न मौत आती है. खुद अपने आपको कोई कष्ट पहुंचाकर अपनी विधवा माँ को कष्ट नहीं पहुंचा सकता हूँ. पहले ही मैंने अपनी माँ का बहुत दिल दुखाया है . उनकी मर्जी के बगैर "लव मैरिज" करके  उनके सपनों का खून किया है. उस माँ का कितना बड़ा दिल है. उसने फिर भी मेरी खुशियों के लिए क्षमा कर दिया था. मगर दूषित मानसिकता वाली पत्नी ने अपनी दूषित मानसिकता बदलने की कोशिश ही नहीं की. इसको कहते हैं कि-एक माँ का दिल को दुखाकर कोई सुखी नहीं रह सकता है. एक दूषित मानसिकता वाली लड़की जब किसी बेटे के सामने ही उसकी माँ को "मनहूस" कहे तो क्या एक बेटा ऐसी लड़की की हत्या नहीं कर देगा? मगर मेरे संस्कारों ने कभी उसके ऊपर हाथ उठाने तक की गवाही नहीं दी. अब आप मेरे द्वारा भेजी ईमेल पढ़ें. *नोट: नमीषा एक बदला हुआ नाम है.
 07-2-2011 नमीषा ! अगर तुमको हिंदी में लिखने में परेशानी हो तो इन्टरनेट पर http://www.google.co.in/transliterate खोलकर रोमन इंग्लिश में लिखना शुरू कर दें और उसके बाद जैसे ही स्पेस दोगी. आपका लिखा हुआ शब्द हिंदी में बदल जायेगा. मैंने आपको 20 नव., 24 दिस.,5 जन., 25 जन., 27 जन., 4 फरवरी और 5 फरवरी 2011 को तुम्हारे फ़ोन पर sms भेजें थें, हो सकता है कि-स्पेलिंग ठीक न होने के कारण कुछ समझ नहीं आया हो. अब मैं आपको कभी sms भेजकर परेशान नहीं करूँगा. अक्सर तुम कहती थी कि-दुसरे की तरफ एक ऊँगली करने से पहले यह याद रखना चाहिए कि-तीन उँगलियाँ तुम्हारी तरफ भी होती है. आप यह बात कैसे भूल गई? तुम्हारी ईमेल का इन्तजार रहेगा अगर तुम जवाब देना उचित समझो तो या तुम्हारा वकील अनुमति दे.

1.
नमीषा, आपको जन्मदिन मुबारक हो.सांच को आंच नहीं!सच्चाई पर ही दुनियां कायम है.एक बार फिर से आपको जन्मदिन मुबारक हो.

2.
नमीषा ! तरसों सुबह यानि 21/12/2010 को श्रवण जैन के पापा मनोहर लाल जैन की डेथ हो गई है. जिनसे तुमने बहादुरगढ़ वाले चाचा का फ़ोन नं. लिया था. मेरे रिकोर्ट के अनुसार सितम्बर 2009 में एक बार तुमने फ़ोन पर कहा था की मेरे रिश्तेदार मुझसे ज्यादा अच्छे है.जोकि उन्होंने चाय-पानी तो पिलाया.अब देखते है तुम अपना इंसानियत का कितना फर्ज निभाती हो? तुमने लालच में आकर मेरे ऊपर एक से एक गंदे आरोप लगाये है. जिनका मैं अपनी ईमानदारी, अच्छे संस्कारों और अपने तपोबल की मदद से कोर्ट में जवाब दूंगा. आपके गंदे-गंदे आरोपों से यह तो साबित हो गया की आपको कैसे संस्कार मिले है? आपको मेरे खिलाफ FIR दर्ज करवाने के लिए कितने झूठों का सहारा लेना पढ़ा है? जरा इस पर विचार करना? नाम के पीछे मात्र जैन लिख लेने से संस्कार नहीं आते है बल्कि इस के लिए तपस्या भी करनी पड़ती है. सांच को आंच नहीं आती है और हमेशा बुरी पर अच्छाई की विजय होती है. इतना याद रखना.हैप्पी न्यू इयर-2011

3.
नमीषा! परसों यानि 03/01/2011को पूरा एक साल हो गया जब तुमने और तुम्हारी मम्मी ने मुझे सार्वजनिक रूप से सारे मोहल्ले के सामाने 'हिजड़ा' कहा था. अगर मैं हिजड़ा हूँ तो धारा125 के तहत केस क्यों किया? क्या कभी हिजड़ों या नामर्द के बच्चे भी होते हैं? क्या अब तुम्हारे माँ-बाप से 2 रोटी नहीं खिलाई जा रही है. जो तुम अक्सर कहती थीं की मुझे 2 रोटी खिला सकते हैं और मेरे माता-पिता ने यह नहीं सिखाया? यह तो मेरे ऊपर एक से एक गंदे लगाये आरोपों और कोर्ट से आये पेपरों को देखकर/पढ़कर मालुम हो गया है और मेरी फाइलों से गुम कागजों को देखकर पता चल गया. आपको क्या सिखाया गया था? आज यानि 05/01/2011 को तुमको मायके में रहते हुए पुरे 2 साल हो गए है. मगर आज तक तुमको यह अहसास नहीं हुआ. तुमने मेरे लाख मना करने और तुम्हारे पैर पकड़ने के बाद भी तुमने अपनी मर्जी से दवाब में अपने पति का घर छोड़कर गलती की थी. आज वो बहन आपको कितना पूछती है जिसके लिए अपने बीमार पति की बीमारी को अहमियत न देते हुए अपने घर को अपने हाथों से उजाड़ लिया था. मैंने आपको हमेशा प्यार से समझाने की बहुत कोशिश की मगर आपको मेरी बातों में कुछ भी अच्छाई दिखाई नहीं दी. इसका मुझे बहुत अफ़सोस है. फिर भी अपने बच्चे का धयान रखना सर्दी बहुत ज्यादा हो रही है.आपके गंदे-गंदे आरोपों से यह तो साबित हो गया की आपको कैसे संस्कार मिले है? आपको मेरे खिलाफ FIR दर्ज करवाने के लिए कितने झूठों का सहारा लेना पढ़ा है? जरा इस पर विचार करना? सांच को आंच नहीं आती है और हमेशा बुराई पर अच्छाई की विजय होती है. इतना याद रखना. सेंडिंग by : आपके आरोपों की थाना मोतीनगर की FIR no138/2010 का आरोपी.

4.
नमीषा! क्या तुम्हारी कोई email id है.अगर है तो मुझे sms कर दो.मैं तुम्हें एक आखिरी लैटर ईमेल से भेजना चाहता हूँ. उसके बाद तो सिर्फ कोर्ट में आपके केसों का जवाब ही दूंगा.वैसे 383 दिन हो चुके है आपको केसों को दर्ज करवाए हुए. क्या मिला आजतक आपको सिर्फ एक तारीख के बाद दूसरी तारीख. भविष्य में आप कितने सालों और कोर्ट में केस लड़ना चाहती हो? अगर आपने कभी सुई की नोक जितना भी प्यार किया है या रमन के अच्छे और उज्जवल भविष्य की सोचती हो तो sms करके प्लीज़ अपना email id बता दो.अगर तुम चाहो तो मैं भी तुम्हारी email id बना सकता हूँ.मगर जब तुम sms या फ़ोन करके कहोगी.तब ही बनाऊंगा. sending by : आपके आरोपों की थाना मोतीनगर की FIR No138/2010 का आरोपी. मुझे आपके जवाब चाहे वो गलियां ही क्यों न हो इन्तजार रहेगा.

5.
रमन तुमको जन्मदिन मुबारक हो.इस नए साल में तुम खुश रहो और स्वस्थ रहो. हैप्पी BRITH DAY TO यू-रमन!

6. .नमीषा!मुझे कल ही तुम्हारी 2 (nmisha_772@yahoo.com, nmisha02222@gmail.com.) ईमेल id sms द्वारा मिली है.2 sms आने से कन्फुज़ हो गया हूँ.कौन सी ईमेल id सही है? इसलिए अपनी ईमेल id से मेरी ईमेल id :- (sirfiraa20101976@gmail.com) पर एक ईमेल भेजकर पुष्टि कर दो. वैसे आज मेरे पिताजी की तीसरी पुण्यतिथि है और फिलहाल बीमार चल रहा हूँ. इसलिए कुछ दिनों तक तुमको लैटर नहीं भेजुगा. इतनी देर से अपना ईमेल id sms किया है. इससे लगता है कि हर बात शायद तुम अपने वकील से पूछकर ही काम कर रही हो. मगर इतना कहूँगा आजतक किसी वकील ने किसी का घर नहीं बसाया है बल्कि घरों को उजाड़ने का काम ज्यादा किया है. लेकिन यह हम पर निर्भर है कि-हम वकील द्वारा कही बात को कितना मानते है.उसको तो अपनी फीस लेनी है और ज्यादा से ज्यादा समय तक केस चलाना है. मेरी सारी ज़मापूंजी ख़त्म होने पर ही सरकारी वकील लिया है. sms भेजने से यह तो मालुम हो गया है कि-हाँ! कभी तुमने मुझसे कभी सुई की नोक जितना प्यार भी किया था. मगर तुमने कभी मेरे प्यार को कभी नहीं समझा. मैंने अपने प्यार की सच्चाई के लिए अपनी इज्जत,मान-सम्मान,धन-दौलत,धर्म और जाति की परवाह नहीं की.इसलिए ही तुम्हारी सभी प्रकार की क्रूरता के साथ ही बेतमिजियां भी सहन करता रहा.इस उम्मीद में की शायद तुमको मेरा सच्चा प्यार बदल दें और मेरे प्यार का तुमको एहसास हो जाये. मगर तुमने कभी अपने पति के प्रति जिम्मेदारियों को समझना ही नहीं चाहा.लेकिन तुमने एक सच्चे प्यार को मात्र वकीलों के वह्काने पर बहुत बदनाम कर दिया. मुझ पर लगाये सारे आरोप आपको साबित करने हैं मुझे नहीं! मैं तो सिर्फ कोर्ट में खड़ा होकर इन्तजार करंगा और देखूंगा की तुमने प्यार किया था या साजिश की थी.उसके बाद अपना पक्ष रखना है अपने वचाव में, साबित करना होगा कि- मुझसे प्यार तो कभी किया ही नहीं था बल्कि मेरे खिलाफ एक साजिश की गई थी.तुमने कभी मेरी बातों को गंभीरता से लेकर अपनी शादीशुदा जिंदगी ठीक से चलाने की कोशिश ही नहीं की. काश! अगर तुमने समझदारी से काम लिया होता तो आज तुम कोर्ट-कहचरी के चक्कर नहीं लगा रही होती.बस अब यह ही कहूँगा कि-"उम्र कैद होगी क्या है फैसला आदालत का, मुकद्दमा चलेगा अब मुहब्बत का, सजा मिलते ही दम टूटेगा मेरे जज्बातों का" अपनी ईमेल id से मेरी ईमेल id पर सिर्फ इतना बता दो कि-भविष्य में आप कितने सालों और कोर्ट में केस लड़ना चाहती हो और मुझसे क्या (जो मैं दे सकता हूँ-जोकि तुम जानती हो) चाहती हो? अगर गर्व के अच्छे और उज्जवल भविष्य कि सोचती हो तो! sending by :अब तो मेरी एक ही पहचान है जो तुम भी जानती हो:-आपके आरोपों कि थाना मोतीनगर कि FIR No138/2010 का आरोपी.मुझे आपके जवाब का चाहे वो गलियां ही क्यों न हो इन्तजार रहेगा.अब FIR के बाद एक ईमेल(हिंदी) भी लिखकर भेज दो.कुछ लोग प्यार करके कर देते है बर्बाद-कुछ करके हो जाते है बर्बाद.

7.
.नमीषा! अगर तुमको हिंदी में ईमेल भेजने में परेशानी हो तो तुम कल (11a.m के बाद) फ़ोन भी कर सकती हो.अगर तुमको मेरे द्वारा sms भेजने से परेशानी होती हो तो pliz एक बार बता देना.मेरा आपको किसी प्रकार का परेशान करने का कोई इरादा नहीं है.मैं लोगों के दिलों से दुआ लेने में विश्वास करता हूँ.sms भेजने से किसी प्रकार की आपको कोई अगर अनजाने में परेशानी हुई हो या गलती हुई हो तो उसके लिए क्षमा कर देना.क्षमादान सबसे बड़ा दान होता है.sending by :-अब तो मेरी एक ही पहचान है जो तुम भी जानती हो-आपके आरोपों की थाना मोतीनगर की FIR No138/2010 का आरोपी

सोमवार, मार्च 14, 2011

मैं देशप्रेम में "सिरफिरा" था, "सिरफिरा" हूँ और "सिरफिरा" रहूँगा.

दोस्तों/ पाठकों, 
अगर आप मुझे या मेरे ब्लॉग या कई अन्य ब्लोगों पर मेरे विचार लगातार पढ़ते रहे हैं. तब आप मेरी परेशानियों से अवगत जरुर होंगे. पिछले कुछ 10 दिनों से अपनी पथभ्रष्ट पत्नी नमीषा ( बदला हुआ एक नाम, जगह का नाम आदि यह नाम किसी के नाम से किसी प्रकार की समानता संयोग मात्र है. उपरोक्त ब्लॉग पर उपरोक्त पोस्ट किसी का अपमान करने के उद्देश्य से नहीं डाली जा रही है. बल्कि अपने अनुभवों द्वारा कुछ लोगों (पथभ्रष्ट) को परिवार, देश और समाजहित में जिम्मेदार बनने की एक छोटी सी कोशिश मात्र है) समझाने के उद्देश्य से ईमेल द्वारा कुछ बातचीत होती है. उनको भेजी ईमेल और मुझे मिली ईमेल को भी पोस्ट किया जा रहा है. यहाँ एक बात बताता जा रहा हूँ. मैं सिर्फ मैट्रिक पास हूँ, वो भी बहुत कष्टों में पास की थी. घर की आर्थिक स्थिति ठीक न होने और कुछ ऐसे कारण (जिनका समयाभाव के कारण उल्लेख करना संभव नहीं) से पढाई नहीं कर सका था. लेकिन अपनी कठिन मेहनत करने की इच्छा शक्ति के कारण अपने आपको इंसानियत की दुनियां में कुछ काबिल बनाया है. मगर मुझे मेरी पत्नी और सुसराल वाले अनपढ़, ग्वार समझते है. मुझे अंग्रेजी भाषा नहीं आती है या यह कहूँ कि-अंग्रेजी भाषा में लिखी बातों के भाव समझने में असमर्थ हूँ. इस सन्दर्भ में मेरा विचार है कि- ऐसी भाषा को मैं क्यों अपनाऊँ जिसके भाव न मैं खुद समझ सकूँ और न किसी को अपनी बात(भाव) को समझा सकूँ. इसलिए मैंने अपने विचारों को व्यक्त करने के लिए "हिंदी" को अपना रखा है. मेरी पत्नी की हिंदी अच्छी नहीं है और उन्होंने एम.बी.ए की अधूरी पढाई(संस्था फर्जी होने के कारण केवल 9 महीने के पढाई हुई थी, बाद काफी समझाने पर भी आगे नहीं की) हुई है. मगर जहाँ सच्चा प्यार होता है. वहां पर भाषा इसकी मोहताज़ नहीं होती है. मैं अपनी पत्नी की टूटी-फूटी हिंदी और मेरी पत्नी मेरी टूटी-फूटी अंग्रेजी समझ लेंती हैं. 
मैं देशप्रेम में "सिरफिरा" था, "सिरफिरा" हूँ और "सिरफिरा" रहूँगा.

14-3-2011 आपको मैंने देखा है और आपसे काफी कुछ सिखा है.फॉर एक्साम्प्ले-लिखने टाइम हम जीस भी लेखनी का उसे करते है. हिंदी एंड इंग्लिश, में हम रेस्पेक्ट की लन्गुअगे लिखते है.आप मेरे फ्रेंड नहीं है-- फ्रेंड का नाम लिया जाता है.आप मेरे तेअचेर नहीं है-- तेअचेर को मैडम कहा जाता है. आप मेरे सर नहीं है--- सर को सर कहा जाता है. आप मेरे हुसबंद है दार तो मई आपको पति ही कह सकई हु.हमेशा मुझे गलत मात समजे आप.मेरा आपको परेशान करने का कोई इरादा नहीं है. आप मेरे फ़ोन से परेशान रहते थे तो मेने आपको फ़ोन करना बांध कर दिया था.समय हमेशा एक-सा नहीं रहता दार. तकदीर बागवान ने लिखी है. ऊसके आगे किसी की नहीं चलती दार. आप मेरी एक बात मानेगे-सिरफिरा का उसे कम किया कीजिये यह वर्ड आपकी कुंडली में दोष,हनी, परेशानी को बरता है.आपकी 3 बार बैल रिजेक्ट होने पैर भी आप जेल क्यों नहीं गई,आपने इस बात पैर कभी गुर नहीं किया होगा,समझदार को इशारा कफ्ही है.aapko maine dekha hai,aur aapse kafhi kuch sikha hai.for example-likhne time hum jiis bhi lekhani ka use karte hai. hindi and english,mei hum respect ki language likhate hai.aap mere friend nahi hai. --------- friend ka naam liya jata hai.aap mere teacher nahi hai.------------- teacher ko madam kaha jata hai.aap mere sir nahi hai.-------------- sir ko sir kaha jata hai.-......................aap mere husband hai dear to mai aapko pati hi keh sakyi hu.hamesha mujhe galat maat samje aap.mera aap ko pareshan karne ka koi erada nahi hai.aap mere hone se pareshan rehte the to mene aapko phone karna bandh kar diya tha. smy hamesha ek sa nahi rehta dear. takdeer bagvan ne likhi hai. uuske aage kisi ki nahi chalati dear. AAP MERI EK BAAT MANEGE sirfiraa ka use kam kiya kijiye yeh word aapki kundli mei dosh, hani , pereshani ko barata hai. aapki 3 baar bail reject hone per bhi aap jail kyu nahi gai ,aapne ees baat per kabhi goor nahi kiya hoga,samajhdar ko eeshara kafhi hai.
 
डियर नमीषा जी, 
आप मेरे दोनों (पेशा व धर्म) तत्यों को स्वीकार करने से इंकार कर रही है. वैसे जिससे हम कुछ सीखते हैं उसको हम "गुरु" कहते है. हमारा इतिहास गवाह रहा है कि- एक अच्छे "गुरु" ने समय-समय पर जन कल्याण हेतु अपने शरीर का त्याग तक किया है. एक अच्छा "गुरु" ही अपने शिष्य के अंधकारमय जीवन को (प्रकाश) उजाले की ओर लेकर जाता है. यह कार्य अनेकों बार एक अच्छा "दोस्त" भी कर सकता है. आप अपने अनेक दोस्तों/रिश्तेदारों का नाम(जिनका नाम मैं लिखना उचित नहीं समझता हूँ या यह कहूँ मेरे संस्कार गवाही नहीं दे रहे हैं) लेकर कई अनुचित बात कहती थी. मेरा यह दुर्भाग्य रहा कि-आपको एक अच्छा और सच्चा "दोस्त" या "गुरु" नहीं मिला. जो आपको सही मार्ग दिखा सकें. जो एकाध मिले वो इस कार्य में असमर्थ थें, क्योंकि एक समाज से जुड़ा सामाजिक व्यक्ति ही कार्य कर सकता है.
                 मैं आपका एक सच्चा दोस्त और गुरु बनकर आपके हितों की बात बताने के साथ ही संसारिक जीवन से जुड़े कार्य करने की प्रेरणा देता था. इसलिए ही अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने के साथ ही आपको भी अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए कहता था. मगर अफ़सोस! मेरा यह सबसे बड़ा दुर्भाग्य रहा. आप कानों की कच्ची होने के साथ ही अपने विवेक का इस्तेमाल न करने के कारण असहनीय एक के बाद एक गलती को दोहराती रही. मैं आपकी बड़ी से बड़ी गलती को काफी समय तक नजरांदाज करता रहा और हर बार क्षमा करता रहा. जिसका प्रभाव मेरे कार्य और मस्तिक के साथ-साथ शरीर पर पड़ने लगा था. शायद मैंने कहीं सुन या पढ़ लिया था कि-प्यार से तो हैवान को भी इंसान बनाया जा सकता है. आप मुझे मेरी शारीरिक (भोजन आदि) जरूरतों से भी वंचित करने लगी. 
                 आपने मेरे खिलाफ फर्जी केस इतने गंदे-गंदे आरोप लगाकर दर्ज करवाए. क्या यह परेशान करने का इरादा नहीं है तो आखिर है क्या? क्या इनके पीछे बदले की भावना, निजी स्वार्थ के साथ ही लालच की भावना नहीं है? जब कभी अन्जाने में किसी से कोई गलती हो जाती है तो क्या उसको सुधारने की कोशिश नहीं करनी चाहिए. मगर आप एक के एक बाद गलती करती जा रही है. आप कोर्ट-कचहरी में झूठ बोल या लिखवा सकती है, मगर आपने आपसे और उस परमपिता भगवान से कैसे झूठ बोल सकती हैं. कोर्ट-कचहरी कोई घर-गृहस्थी नहीं है.जहाँ पर आप झूठ बोल लेंगी और कोई कुछ नहीं कहेगा. आपको अपनी हर बात को साबित करने के लिए सबूत देने होते हैं. आप कब से तक़दीर और भगवान पर भरोसा करने लगी? मैंने तो आपको हमेशा (एकाध अपवाद छोड़ दें) भगवानों और मेरे पित्तरों का अपशब्द बोलते ही सुना था. 
                    जहाँ तक कुंडली में दोष की बात है. कुंडली में यह भी लिखा था कि-मुझे आपसे शादी नहीं करनी चाहिए और हमारे औलाद नहीं होगी. मैं इन दकियानूसी और अंधविश्वासी बातों पर आप जितना विश्वास नहीं करता हूँ. आपने इनको ज्यादा अमिहयत दी. परेशानी में आदमी की असली परीक्षा होती है. फिर "सोने "  में भी तो आग में तप-तपकर "निखार" आता है. आपकी उपरोक्त बात (3 बार बैल रिजेक्ट होने पैर भी आप जेल क्यों नहीं गई) पर सिर्फ यह ही कहूँगा कि-आज भी आपको पूरी छुट है. आप जब मर्जी जेल में भिजवा सकती हैं. कोई पेशेवर अपराधी या भगौड़ा नहीं हूँ. यह तो मेरे सिध्दांत गवाही नहीं दे रहे हैं वरना हमारे देश की भ्रष्ट न्याय व्यवस्था में सरकारी वकील 25 हजार रूपये, 25-50 हजार रूपये जांच अधिकारी और एक जज के रिश्तेदार को एक लाख रूपये देकर अपनी जमानत करवा सकता था. फिर आपका फर्जी केसों में जेल भेजने का सपना एक अधुरा सपना बनकर रह जाता.मैं स्वंय को सच्चा और निर्दोष मानता हूँ. तब क्यों रिश्वत दूँ? 
                           जब सांच को आंच नहीं और बुराई पर अच्छाई की विजय निश्चित है. मैंने कोई "कत्ल" नहीं किया था, जो रिश्वत देता. मैंने सच्चा प्यार किया था. अपने सच्चे प्यार की आन-बान-शान के लिए फाँसी का फंदा भी चूमने को तैयार हूँ. नहीं दूँगा, नहीं दूँगा, बिलकुल नहीं दूँगा, रिश्वत नहीं दूँगा चाहे मुझे कोई (भारत और पत्नी के फर्जी केस) भी देश की न्याय व्यवस्था फाँसी लगा दें. भ्रष्टाचारी मार तो सकते हैं मगर झुका नहीं सकते हैं. अब मैं समझदार कहाँ रह गया हूँ. मैं देशप्रेम में "सिरफिरा" था, "सिरफिरा" हूँ और "सिरफिरा" रहूँगा.
Sent: 2011-03-14 08:49 क्या आप मुझे मेरे बेटे रमन से एक-दो दिन में मिलवा सकती हो? अगर आपने इस एस.एम.एस का जवाब  नहीं दिया तो मैं आपका जवाब "इनकार" समझूंगा- via WAY2SMS.COM & आपकी ईमेल का उत्तर भेज दिया गया है.- Sent via WAY2SMS.COM 

Sent: 2011-03-14 08:49 kya aap mujhe mere bete RAMAN se ek-do din mein milwa sakti ho? agar aapne es sms ka jawab nahi diya to main aapka jawab " inkaar" samjhunga - via WAY2SMS.COM & aapki email ka uttr bhej diya gaya hai. - Sent via WAY2SMS.COM

शुक्रवार, मार्च 11, 2011

एक आत्मकथा-"सच का सामना"

भ्रष्ट व अंधी-बहरी न्याय व्यवस्था से प्राप्त
अनुभवों की कहानी का ही नाम है
"सच का सामना"
वाह! क्या कहने है? किसी ने क्या खूब पक्तियां कही है कि-प्यार एक अहसास है,एक ऐसा एहसास जिसने लाखों लोगों के सपने संजोये, लाखों मुर्दा दिलों को जीने की राह दिखाई....... एक ऐसा एहसास जिसने लाखों लोगों को जीते जी मार दिया, वे ना जी सके और ना ही मर सके, बस एक जिन्दा लाश बनकर रह गए......प्यार जो पूजा भी है...... प्यार जो जिन्दा इंसान की मौत का कारण भी है और उसका कफन भी है... प्यार हरेक के लिए कुछ अलग, कुछ जुदा, कुछ खट्टा और कुछ मीठा है. कुछ लोग मोहब्बत करके हो जाते हैं बर्बाद, कुछ लोग मोहब्बत करके कर देते हैं बर्बाद.
                             मैंने ऐसा अनुभव किया कि-अक्सर लोग दूसरों के जीवन में ताकझांक की कोशिश भी खूब करते/होती हैं. लेकिन अपने दांपत्य जीवन की परतें खोलने का प्रयास कोई नहीं करता. मगर कुछ महिलाएं अपनी करीबी सहेलियों से थोड़ा बहुत शेयर भी कर लेती है. लेकिन पुरुष इस पर कुछ कहना अपनी प्रतिष्ठा के खिलाफ समझता है. वह अपने दांपत्य जीवन को लोहे की जंजीरों से जकड़े रखना चाहता है. मगर कभी-कभी ऐसा होता है कि-एक सभ्य और सम्मानित पुरुष वेकसूर होते हुए भी कसूरवार ठहरा दिया जाता है. तब वो पुरुष अपने दांपत्य जीवन की परतें खोलने के लिए मजबूर हो जाता है.
                             मैंने पूरी ईमानदारी से दांपत्य जीवन की डोर चलाने की बहुत कोशिश की. मगर पत्नी और सुसरालियों के फर्जी केस दर्ज करने वाले अधिकारी और रिश्वत मांगते सरकारी वकील, पुलिस अधिकारी के अलावा धोखा देते वकीलों की कार्यशैली, भ्रष्ट व अंधी-बहरी न्याय व्यवस्था से प्राप्त अनुभवों की कहानी का ही नाम है"सच का सामना"
                             मेरे प्रेम-विवाह करने से पहले और बाद के जीवन में आये उतराव-चढ़ाव का उल्लेख करती एक आत्मकथा "सच का सामना" उपन्यास के रूप में बहुत जल्द ही प्रकाशित होगी.आज के हालतों से अवगत करने का एक प्रयास में इन्टरनेट संस्करण जिसे भविष्य में उपन्यास का रूप प्रदान किया जायेगा.

एक महत्वपूर्ण वैवाहिक सलाह :- आप पिछले विवादों को बार-बार कुरेदकर एक-दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश न करें. जो भी मामला या विवाद एक बार सुलझा लें उसके बाद उसे भूल जाएँ. लेकिन कहीं बार कुछ महिलाएं पुराने विवादों को बार-बार कुरेदकर अपने परिवार को अपने हाथों से उजाड़ चुकी हैं. आप कदपि ऐसा न करें.
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