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मंगलवार, अप्रैल 30, 2013

"विवाह" नामक संस्था का स्वरूप खराब हो रहा है


दूषित मानसिकता वाली अपनी पत्नी को समर्पित चंद शब्द

"मत खुश हो कि बर्बादी वाली हवा का रुख हमारी ओर है!
भूल मत जाना यह आवारा हवा कब किस ओर मुड जाये!!"

"वेवफाई करके हमारी बर्बादी से तुम बहुत खुश हो !
हमें फख्र है अपनी बर्बादी पर कि वफ़ा करके बर्बाद हुए" !!




आज मात्र कागज के चंद टुकड़ों के लिए कुछ दूषित मानसिकता वाली लडकियां अपने शरीर तक को दांव पर लगा देती हैं और पति-पत्नी के बीच स्थापित हुए संबंधों की कीमत तक वसूल करती या मांग करती हैं. बस उनकी दौलत की हवस पूरी होनी चाहिए और कुछ दूषित मानसिकता वाले उसके परिजन अपनी बेटी के शरीर की कीमत तक वसूलने लगें है या यह कहे तो अतिशोक्ति नहीं होगी कि अपनी बेटियां के नाम पर सौदेबाजी करते हुए धंधा (वेश्यावृति) करने लगे है. 
        यदि कोई राह चलते चोर, लुटेरा या डाकू आपकी गर्दन पर चाकू या रिवाल्वर लगाकर आपके पास मौजूद धन मांगे तो आप अपनी जान बचाने के लिए अपना सब कुछ दे देंगे या कोई चोर, लुटेरा या डाकू आपके किसी परिजन या सन्तान का अपहरण करके ले जाये और उसको छोड़ने के एवज में आपसे जो कीमत मांगेगा, आप उस समय बेशक कर्ज लेकर उसका मुंह भरेंगे, क्योंकि जिस व्यक्ति/इंसान की "आत्मा" या "इंसानियत" मर गई हो. आप उससे दया और मानवता की उम्मीद नहीं कर सकते हैं. 
          आज इसी प्रकार से कुछ दूषित मानसिकता वाले वधू पक्ष के वर पक्ष पर दहेज कानूनों का दुरूपयोग करते हुए फर्जी केस दर्ज करवाते देते है और यह कहे तो गलत नहीं होगा कि गले पर चाकू रखकर सौदेबाजी होती है. मुंह मांगी कीमत मिलने पर केस वापिस ले लिया जाता है. आज इन्ही जैसी कुछ दूषित मानसिकता वाली लड़कियों के कारण "विवाह" नामक संस्था का स्वरूप खराब होता जा रहा है. इसमें पैसों के लालची पुलिस वाले, वकील और जज आदि इनकी मदद करते हैं. यहाँ गौरतलब है जब ऐसे केस "हाईकोर्ट" से खारिज होते हैं तब अंधे-बहरे बैठे जज भी "वर" पक्ष पर क़ानूनी व्यवस्था का कीमती समय खराब करने के नाम जुरमाना लगाते हैं. ऐसे मामलों में आज तक इतिहास रहा है कि कभी किसी लड़की वालों पर जुरमाना किया हो, क्योकि "हाईकोर्ट" में बैठे जज भी भेदभाव करते हुए महिलाओं के पक्ष में "फैसला" देकर वाहवाही लूटने के साथ अपने "नम्बर" बनाने में व्यस्त रहते हैं. 
              मैं अपनी दूषित मानसिकता वाली पत्नी के दुर्व्यवहार के बाबजूद अपने जैन धर्म से नहीं डिगा यानि मैंने अपनी पत्नी पर कभी हाथ नहीं उठाया था. उसकी हिंसा का बदला प्रतिहिंसा से नहीं दिया, क्योंकि अच्छे और बुरे इंसान में फिर क्या कोई फर्क रह जायेगा.  
       अपने माता-पिता और जैन धर्म से मिले संस्कारों के अनुसार मैं अच्छी व सभ्य लड़कियों/महिलाओं का बहुत आदर-सम्मान करता हूँ. मेरा मानना है कि यह वहीँ ही भारत देश की नारियां है. जिन्होंने मेरे आदर्श नेताजी सुभाषचन्द्र बोस, श्री लालबहादुर शास्त्री, शहीद भगत सिंह, चन्द्रशेखर आज़ाद आदि जैसे अनेक वीरों, महापुरुषों और क्रांतिकारी नौजवानों को जन्म दिया है. आप विचार करें कि "क्या ऐसी विचारधारा रखने वाला एक सभ्य व्यक्ति और बुध्दिजीवी अपनी पत्नी को दहेज लाने के लिए प्रताडित कर सकता है ? आपको सनद होगा कि एक पत्रकार समाज में फैली कुरीतियों का खात्मा के लिए अपनी लेखनी के माध्यम से विरोध करते हुए अपना पूरा जीवन तक न्यौछावर कर देता है. वैसे जैन धर्म में बलिदान, क्रोध और त्याग आदि पर बहुत अच्छा साहित्य है. मैंने खूब पढ़ें भी हैं और अपने जीवन में उनका अमल भी किया. मगर अचानक मेरी पत्नी के बदले हुए व्यवहार और उसके परिजनों द्वारा द्वेष भावना, बदला लेने की भावना, लालचवश किये झूठे केसों ने मुझे बहुत अधिक तोड़ दिया था. इस कारण मुझे बहुत गहरा मानसिक आघात लगा.जिसके कारण ही "डिप्रेशन" में चला गया था.लगभग सात-आठ साल वैवाहिक विवादों और चार-पांच साल तक कोर्ट-कचहरी के साथ पुलिस कार्यवाही हेतु चक्कर लगाते-लगाते शारीरिक, मानसिक और आर्थिक रूप से काफी टूट गया था. फ़िलहाल मुझे सम्भलने में थोडा समय जरुर लगेगा. 

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