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शनिवार, जून 18, 2011

मैं खाली हाथ आया और खाली हाथ लौट जाऊँगा

आज से 26 साल पहले 31 जनवरी 1985 को मेरी सबसे बड़ी बहन शकुंतला जैन को ससुराल वालों ने जलाकर मार दिया था.तब भी पुलिस ने रिश्वत लेकर या सिफारिश के कारण मेरे अनपढ़ माता-पिता से कोरे कागजों पर अंगूठे लगवाकर अपनी मर्जी का रिपोर्ट में लिखकर ससुरालियों की मदद की थी और 16 मार्च 2008 की रात लगभग 11:30 बजे जब मेरे बड़े भाई पवन कुमार जैन के साथ अज्ञात व्यक्तियों ने लूटमार की. तब से आजतक उसकी एफ.आई.आर दर्ज नहीं की.फ़िलहाल मेरे ऊपर धारा 498अ व 406 के तहत थाना मोतीनगर में एक झूठी एफ.आई.आर.नं-138/10 दर्ज कर रखी है और दिल्ली पुलिस की कार्यशैली ने आज हमारे परिवार को बर्बादी की कगार पर पहुंचा दिया है.दिल्ली पुलिस ने हमारे परिवार के ऊपर हमेशा बहुत अन्याय किया है. मैं आपसे पत्र के माध्यम से वादा करता हूँ की अगर न्याय प्रक्रिया मेरा साथ देती है तब कम से कम 551लाख रूपये का राजस्व का सरकार को फायदा करवा सकता हूँ. मुझे किसी प्रकार का कोई ईनाम भी नहीं चाहिए. मैं खाली हाथ आया और खाली हाथ लौट जाऊँगा. ऐसा ही एक पत्र दिल्ली के उच्च न्यायालय में लिखकर भेजा है. ज्यादा पढ़ने के लिए नीचे किल्क करके पढ़ें.

सोमवार, जून 13, 2011

कोई खाकी वर्दी वाला मेरे मृतक शरीर को न छूने की कोशिश भी न करें

दिल्ली पुलिस का कोई सादी या खाकी वर्दी वाला मेरे मृतक शरीर को न छूने की कोशिश भी न करें. मैं नहीं मानता कि-तुम मेरे मृतक शरीर को छूने के भी लायक हो. आप भी उपरोक्त पत्र पढ़कर जाने की क्यों नहीं हैं पुलिस के अधिकारी मेरे मृतक शरीर को छूने के लायक? अपनी अमानत ले जाओ अब मैं उसकी रक्षा करने में असमर्थ हूँ. 

रविवार, जून 12, 2011

मैंने पत्नी की जो मानसिक यातनाएं भुगती हैं

मेरी पत्नी और सुसराल वालों ने महिलाओं के हितों के लिए बनाये कानूनों का दुरपयोग करते हुए मेरे ऊपर फर्जी केस दर्ज करवा दिए. इससे  मेरी परेशानियों में बढ़ोतरी हुई. थोड़ी बहुत पूंजी अपने कार्यों के माध्यम जमा की थी. सभी कार्य बंद होने के, बिमारियों की दवाइयों में और केसों की भागदौड़ में खर्च होने के कारण आज स्थिति यह है कि-पत्रकार हूँ कुछ कानूनों की जानकारी रखता हूँ. इसलिए भीख भी नहीं मांग सकता हूँ और अपना ज़मीर व ईमान बेच नहीं सकता हूँ. अत: कल ही मैंने कल ही राष्ट्रपति से इच्छा मुत्यु प्रदान करने की मांग की हैं. अपना घर बसाने के लिए मैंने अपनी पत्नी के बहुत अत्याचार सहे. शायद उसमें कोई सुधार आ जाए. मगर सुधार आने की वजय बल्कि उसका व्यवहार और ज्यादा क्रूर होता गया. मैंने अपनी पत्नी द्वारा दी जो मानसिक यातनाएं भुगती हैं. उनको कल ही दिल्ली पुलिस कमिश्नर श्री बी.के. गुप्ता और दिल्ली हाई कोर्ट के श्री दीपक मिश्रा जी को एक पत्र में लिखकर भेजा है. शायद कोई उच्च पद पर बैठा अधिकारी मेरी ईमानदारी और विश्वास करें. अगर उनके दिल के किसी कोने में इंसानियत बची होगी तो शायद मुझे इन्साफ मिल जाए.  

शनिवार, जून 11, 2011

माननीय राष्ट्रपति जी मुझे इच्छा मृत्यु प्रदान करके कृतार्थ करें

 कदम-कदम पर भ्रष्टाचार ने अब मेरी जीने 
की इच्छा खत्म कर दी है-सिरफिरा 
मेरा मानना है कि जिंदगी की सबसे बड़ी शर्त है स्वस्थ तन और निर्मल मन.हमारी जिम्मेदारी तन को तन्दुरुस्त रखना तो है ही साथ ही हमारी निरंतर कोशिश मन को भी सारे प्रदूषण से बचाने की हो.प्रदूषित मन का होना स्वस्थ तन से समझौता करना है. जब कोई भी शरीर इस हालत मैं पहुँच गया हो कि उसका जीर्णोंध्दार नहीं हो सकता है तब उसे त्यागने में हर्ज नहीं है. जिंदगी जीने की जिन्दा दिली मैं इतनी ताकत हो कि वह मौत से भी न डरे. इन दिनों मेरा मन और तन सही नहीं रहता है, क्योंकि जो समय समाज और देशहित मैं चिंतन करते हुए कार्य करता था वो ऐसी परेशानियों मैं फंसा हुआ है. जहाँ से एक ईमानदार और सभ्य व्यक्ति निकलना आसान नहीं होता है. जब पूरा भारत देश का हर विभाग भ्रष्टाचार से ग्रस्त हो. तब मुशिकलों का कम होना जल्दी संभव नहीं होता है. अत: मैंने जो भी कदम उठाया है. वो सब मज़बूरी मैं लिया गया निर्णय है. हो सकता कुछ लोगों को यह पसंद न आये लेकिन जिस पर बीत रही होती हैं उसको ही पता होता है कि किस पीड़ा से गुजर रहा है. कहते हैं वो करो, जो मन को अच्छा लगे और उससे किसी का अहित न हो.   
                                                          
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