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सोमवार, मार्च 14, 2011

मैं देशप्रेम में "सिरफिरा" था, "सिरफिरा" हूँ और "सिरफिरा" रहूँगा.

दोस्तों/ पाठकों, 
अगर आप मुझे या मेरे ब्लॉग या कई अन्य ब्लोगों पर मेरे विचार लगातार पढ़ते रहे हैं. तब आप मेरी परेशानियों से अवगत जरुर होंगे. पिछले कुछ 10 दिनों से अपनी पथभ्रष्ट पत्नी नमीषा ( बदला हुआ एक नाम, जगह का नाम आदि यह नाम किसी के नाम से किसी प्रकार की समानता संयोग मात्र है. उपरोक्त ब्लॉग पर उपरोक्त पोस्ट किसी का अपमान करने के उद्देश्य से नहीं डाली जा रही है. बल्कि अपने अनुभवों द्वारा कुछ लोगों (पथभ्रष्ट) को परिवार, देश और समाजहित में जिम्मेदार बनने की एक छोटी सी कोशिश मात्र है) समझाने के उद्देश्य से ईमेल द्वारा कुछ बातचीत होती है. उनको भेजी ईमेल और मुझे मिली ईमेल को भी पोस्ट किया जा रहा है. यहाँ एक बात बताता जा रहा हूँ. मैं सिर्फ मैट्रिक पास हूँ, वो भी बहुत कष्टों में पास की थी. घर की आर्थिक स्थिति ठीक न होने और कुछ ऐसे कारण (जिनका समयाभाव के कारण उल्लेख करना संभव नहीं) से पढाई नहीं कर सका था. लेकिन अपनी कठिन मेहनत करने की इच्छा शक्ति के कारण अपने आपको इंसानियत की दुनियां में कुछ काबिल बनाया है. मगर मुझे मेरी पत्नी और सुसराल वाले अनपढ़, ग्वार समझते है. मुझे अंग्रेजी भाषा नहीं आती है या यह कहूँ कि-अंग्रेजी भाषा में लिखी बातों के भाव समझने में असमर्थ हूँ. इस सन्दर्भ में मेरा विचार है कि- ऐसी भाषा को मैं क्यों अपनाऊँ जिसके भाव न मैं खुद समझ सकूँ और न किसी को अपनी बात(भाव) को समझा सकूँ. इसलिए मैंने अपने विचारों को व्यक्त करने के लिए "हिंदी" को अपना रखा है. मेरी पत्नी की हिंदी अच्छी नहीं है और उन्होंने एम.बी.ए की अधूरी पढाई(संस्था फर्जी होने के कारण केवल 9 महीने के पढाई हुई थी, बाद काफी समझाने पर भी आगे नहीं की) हुई है. मगर जहाँ सच्चा प्यार होता है. वहां पर भाषा इसकी मोहताज़ नहीं होती है. मैं अपनी पत्नी की टूटी-फूटी हिंदी और मेरी पत्नी मेरी टूटी-फूटी अंग्रेजी समझ लेंती हैं. 
मैं देशप्रेम में "सिरफिरा" था, "सिरफिरा" हूँ और "सिरफिरा" रहूँगा.

14-3-2011 आपको मैंने देखा है और आपसे काफी कुछ सिखा है.फॉर एक्साम्प्ले-लिखने टाइम हम जीस भी लेखनी का उसे करते है. हिंदी एंड इंग्लिश, में हम रेस्पेक्ट की लन्गुअगे लिखते है.आप मेरे फ्रेंड नहीं है-- फ्रेंड का नाम लिया जाता है.आप मेरे तेअचेर नहीं है-- तेअचेर को मैडम कहा जाता है. आप मेरे सर नहीं है--- सर को सर कहा जाता है. आप मेरे हुसबंद है दार तो मई आपको पति ही कह सकई हु.हमेशा मुझे गलत मात समजे आप.मेरा आपको परेशान करने का कोई इरादा नहीं है. आप मेरे फ़ोन से परेशान रहते थे तो मेने आपको फ़ोन करना बांध कर दिया था.समय हमेशा एक-सा नहीं रहता दार. तकदीर बागवान ने लिखी है. ऊसके आगे किसी की नहीं चलती दार. आप मेरी एक बात मानेगे-सिरफिरा का उसे कम किया कीजिये यह वर्ड आपकी कुंडली में दोष,हनी, परेशानी को बरता है.आपकी 3 बार बैल रिजेक्ट होने पैर भी आप जेल क्यों नहीं गई,आपने इस बात पैर कभी गुर नहीं किया होगा,समझदार को इशारा कफ्ही है.aapko maine dekha hai,aur aapse kafhi kuch sikha hai.for example-likhne time hum jiis bhi lekhani ka use karte hai. hindi and english,mei hum respect ki language likhate hai.aap mere friend nahi hai. --------- friend ka naam liya jata hai.aap mere teacher nahi hai.------------- teacher ko madam kaha jata hai.aap mere sir nahi hai.-------------- sir ko sir kaha jata hai.-......................aap mere husband hai dear to mai aapko pati hi keh sakyi hu.hamesha mujhe galat maat samje aap.mera aap ko pareshan karne ka koi erada nahi hai.aap mere hone se pareshan rehte the to mene aapko phone karna bandh kar diya tha. smy hamesha ek sa nahi rehta dear. takdeer bagvan ne likhi hai. uuske aage kisi ki nahi chalati dear. AAP MERI EK BAAT MANEGE sirfiraa ka use kam kiya kijiye yeh word aapki kundli mei dosh, hani , pereshani ko barata hai. aapki 3 baar bail reject hone per bhi aap jail kyu nahi gai ,aapne ees baat per kabhi goor nahi kiya hoga,samajhdar ko eeshara kafhi hai.
 
डियर नमीषा जी, 
आप मेरे दोनों (पेशा व धर्म) तत्यों को स्वीकार करने से इंकार कर रही है. वैसे जिससे हम कुछ सीखते हैं उसको हम "गुरु" कहते है. हमारा इतिहास गवाह रहा है कि- एक अच्छे "गुरु" ने समय-समय पर जन कल्याण हेतु अपने शरीर का त्याग तक किया है. एक अच्छा "गुरु" ही अपने शिष्य के अंधकारमय जीवन को (प्रकाश) उजाले की ओर लेकर जाता है. यह कार्य अनेकों बार एक अच्छा "दोस्त" भी कर सकता है. आप अपने अनेक दोस्तों/रिश्तेदारों का नाम(जिनका नाम मैं लिखना उचित नहीं समझता हूँ या यह कहूँ मेरे संस्कार गवाही नहीं दे रहे हैं) लेकर कई अनुचित बात कहती थी. मेरा यह दुर्भाग्य रहा कि-आपको एक अच्छा और सच्चा "दोस्त" या "गुरु" नहीं मिला. जो आपको सही मार्ग दिखा सकें. जो एकाध मिले वो इस कार्य में असमर्थ थें, क्योंकि एक समाज से जुड़ा सामाजिक व्यक्ति ही कार्य कर सकता है.
                 मैं आपका एक सच्चा दोस्त और गुरु बनकर आपके हितों की बात बताने के साथ ही संसारिक जीवन से जुड़े कार्य करने की प्रेरणा देता था. इसलिए ही अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने के साथ ही आपको भी अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए कहता था. मगर अफ़सोस! मेरा यह सबसे बड़ा दुर्भाग्य रहा. आप कानों की कच्ची होने के साथ ही अपने विवेक का इस्तेमाल न करने के कारण असहनीय एक के बाद एक गलती को दोहराती रही. मैं आपकी बड़ी से बड़ी गलती को काफी समय तक नजरांदाज करता रहा और हर बार क्षमा करता रहा. जिसका प्रभाव मेरे कार्य और मस्तिक के साथ-साथ शरीर पर पड़ने लगा था. शायद मैंने कहीं सुन या पढ़ लिया था कि-प्यार से तो हैवान को भी इंसान बनाया जा सकता है. आप मुझे मेरी शारीरिक (भोजन आदि) जरूरतों से भी वंचित करने लगी. 
                 आपने मेरे खिलाफ फर्जी केस इतने गंदे-गंदे आरोप लगाकर दर्ज करवाए. क्या यह परेशान करने का इरादा नहीं है तो आखिर है क्या? क्या इनके पीछे बदले की भावना, निजी स्वार्थ के साथ ही लालच की भावना नहीं है? जब कभी अन्जाने में किसी से कोई गलती हो जाती है तो क्या उसको सुधारने की कोशिश नहीं करनी चाहिए. मगर आप एक के एक बाद गलती करती जा रही है. आप कोर्ट-कचहरी में झूठ बोल या लिखवा सकती है, मगर आपने आपसे और उस परमपिता भगवान से कैसे झूठ बोल सकती हैं. कोर्ट-कचहरी कोई घर-गृहस्थी नहीं है.जहाँ पर आप झूठ बोल लेंगी और कोई कुछ नहीं कहेगा. आपको अपनी हर बात को साबित करने के लिए सबूत देने होते हैं. आप कब से तक़दीर और भगवान पर भरोसा करने लगी? मैंने तो आपको हमेशा (एकाध अपवाद छोड़ दें) भगवानों और मेरे पित्तरों का अपशब्द बोलते ही सुना था. 
                    जहाँ तक कुंडली में दोष की बात है. कुंडली में यह भी लिखा था कि-मुझे आपसे शादी नहीं करनी चाहिए और हमारे औलाद नहीं होगी. मैं इन दकियानूसी और अंधविश्वासी बातों पर आप जितना विश्वास नहीं करता हूँ. आपने इनको ज्यादा अमिहयत दी. परेशानी में आदमी की असली परीक्षा होती है. फिर "सोने "  में भी तो आग में तप-तपकर "निखार" आता है. आपकी उपरोक्त बात (3 बार बैल रिजेक्ट होने पैर भी आप जेल क्यों नहीं गई) पर सिर्फ यह ही कहूँगा कि-आज भी आपको पूरी छुट है. आप जब मर्जी जेल में भिजवा सकती हैं. कोई पेशेवर अपराधी या भगौड़ा नहीं हूँ. यह तो मेरे सिध्दांत गवाही नहीं दे रहे हैं वरना हमारे देश की भ्रष्ट न्याय व्यवस्था में सरकारी वकील 25 हजार रूपये, 25-50 हजार रूपये जांच अधिकारी और एक जज के रिश्तेदार को एक लाख रूपये देकर अपनी जमानत करवा सकता था. फिर आपका फर्जी केसों में जेल भेजने का सपना एक अधुरा सपना बनकर रह जाता.मैं स्वंय को सच्चा और निर्दोष मानता हूँ. तब क्यों रिश्वत दूँ? 
                           जब सांच को आंच नहीं और बुराई पर अच्छाई की विजय निश्चित है. मैंने कोई "कत्ल" नहीं किया था, जो रिश्वत देता. मैंने सच्चा प्यार किया था. अपने सच्चे प्यार की आन-बान-शान के लिए फाँसी का फंदा भी चूमने को तैयार हूँ. नहीं दूँगा, नहीं दूँगा, बिलकुल नहीं दूँगा, रिश्वत नहीं दूँगा चाहे मुझे कोई (भारत और पत्नी के फर्जी केस) भी देश की न्याय व्यवस्था फाँसी लगा दें. भ्रष्टाचारी मार तो सकते हैं मगर झुका नहीं सकते हैं. अब मैं समझदार कहाँ रह गया हूँ. मैं देशप्रेम में "सिरफिरा" था, "सिरफिरा" हूँ और "सिरफिरा" रहूँगा.
Sent: 2011-03-14 08:49 क्या आप मुझे मेरे बेटे रमन से एक-दो दिन में मिलवा सकती हो? अगर आपने इस एस.एम.एस का जवाब  नहीं दिया तो मैं आपका जवाब "इनकार" समझूंगा- via WAY2SMS.COM & आपकी ईमेल का उत्तर भेज दिया गया है.- Sent via WAY2SMS.COM 

Sent: 2011-03-14 08:49 kya aap mujhe mere bete RAMAN se ek-do din mein milwa sakti ho? agar aapne es sms ka jawab nahi diya to main aapka jawab " inkaar" samjhunga - via WAY2SMS.COM & aapki email ka uttr bhej diya gaya hai. - Sent via WAY2SMS.COM

शुक्रवार, मार्च 11, 2011

एक आत्मकथा-"सच का सामना"

भ्रष्ट व अंधी-बहरी न्याय व्यवस्था से प्राप्त
अनुभवों की कहानी का ही नाम है
"सच का सामना"
वाह! क्या कहने है? किसी ने क्या खूब पक्तियां कही है कि-प्यार एक अहसास है,एक ऐसा एहसास जिसने लाखों लोगों के सपने संजोये, लाखों मुर्दा दिलों को जीने की राह दिखाई....... एक ऐसा एहसास जिसने लाखों लोगों को जीते जी मार दिया, वे ना जी सके और ना ही मर सके, बस एक जिन्दा लाश बनकर रह गए......प्यार जो पूजा भी है...... प्यार जो जिन्दा इंसान की मौत का कारण भी है और उसका कफन भी है... प्यार हरेक के लिए कुछ अलग, कुछ जुदा, कुछ खट्टा और कुछ मीठा है. कुछ लोग मोहब्बत करके हो जाते हैं बर्बाद, कुछ लोग मोहब्बत करके कर देते हैं बर्बाद.
                             मैंने ऐसा अनुभव किया कि-अक्सर लोग दूसरों के जीवन में ताकझांक की कोशिश भी खूब करते/होती हैं. लेकिन अपने दांपत्य जीवन की परतें खोलने का प्रयास कोई नहीं करता. मगर कुछ महिलाएं अपनी करीबी सहेलियों से थोड़ा बहुत शेयर भी कर लेती है. लेकिन पुरुष इस पर कुछ कहना अपनी प्रतिष्ठा के खिलाफ समझता है. वह अपने दांपत्य जीवन को लोहे की जंजीरों से जकड़े रखना चाहता है. मगर कभी-कभी ऐसा होता है कि-एक सभ्य और सम्मानित पुरुष वेकसूर होते हुए भी कसूरवार ठहरा दिया जाता है. तब वो पुरुष अपने दांपत्य जीवन की परतें खोलने के लिए मजबूर हो जाता है.
                             मैंने पूरी ईमानदारी से दांपत्य जीवन की डोर चलाने की बहुत कोशिश की. मगर पत्नी और सुसरालियों के फर्जी केस दर्ज करने वाले अधिकारी और रिश्वत मांगते सरकारी वकील, पुलिस अधिकारी के अलावा धोखा देते वकीलों की कार्यशैली, भ्रष्ट व अंधी-बहरी न्याय व्यवस्था से प्राप्त अनुभवों की कहानी का ही नाम है"सच का सामना"
                             मेरे प्रेम-विवाह करने से पहले और बाद के जीवन में आये उतराव-चढ़ाव का उल्लेख करती एक आत्मकथा "सच का सामना" उपन्यास के रूप में बहुत जल्द ही प्रकाशित होगी.आज के हालतों से अवगत करने का एक प्रयास में इन्टरनेट संस्करण जिसे भविष्य में उपन्यास का रूप प्रदान किया जायेगा.

एक महत्वपूर्ण वैवाहिक सलाह :- आप पिछले विवादों को बार-बार कुरेदकर एक-दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश न करें. जो भी मामला या विवाद एक बार सुलझा लें उसके बाद उसे भूल जाएँ. लेकिन कहीं बार कुछ महिलाएं पुराने विवादों को बार-बार कुरेदकर अपने परिवार को अपने हाथों से उजाड़ चुकी हैं. आप कदपि ऐसा न करें.
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