आज वैसे तो 99.98% लोगों का मीडिया और ऑफ कैमरा के सामने कहना है कि अपनी पत्नी को पीटते रहना चाहिए नहीं तो सिर पर सवार हो जाती है. उन्हें ज्यादा प्यार और सम्मान हजम नहीं होता है, जैसा तुम्हारे साथ हुआ है. आप भी अपने विचार व्यक्त करें. दोस्तों, मेरी जिंदगी का 20 जून सबसे बुरा दिन है. जब मैंने सोचा क्या था और हो क्या गया ? आज से सात साल पहले 20 जून 2005 के दिन ही मैंने दहेज विरोधी होने के कारण अपने माँ-पिता की मर्जी के बिना कोर्ट मैरिज की थी. बिना दहेज लिए शादी करने के बाद भी मेरी पत्नी व उसके परिजनों द्वारा दिनांक 13/05/2010 को दर्ज एफ.आई.आर नं. 138/2010 थाना-मोतीनगर, दिल्ली के तहत अपनी पत्नी की अश्लील फोटो / वीडियो बनाने के और दहेज मांगने के झूठे आरोपों के कारण आठ फरवरी से लेकर सात मार्च 2012 तक जेल में रहकर आ चूका हूँ. जिसके कारण अब मेरा मानसिक संतुलन ठीक नहीं रहता है और मेरा सारा कार्य बंद हो गया है. डिप्रेशन की बीमारी के कारण किसी भी कार्य में "मन" भी नहीं लगता है. लेखन आदि कार्य के चिंतन और अध्ययन भी नहीं कर पाता हूँ. आज मेरे पास जजों को "सच" बताने के लिए वकीलों की मोटी-मोटी फ़ीस देने के लिए भी नहीं है. मैं भगवान से दुआ करता हूँ कि कभी मेरे किसी भी दोस्त के साथ ऐसे हालात ना बनाये, क्योंकि आज मेरे सामने कुआँ है और पीछे खाई है. मैं आज ना जिन्दा हूँ और ना मर सकता हूँ. बस एक चलती-फिरती लाश बनकर रह गया हूँ.
दोस्तों, क्या महिलाओं को पीटना मर्दानगी की निशानी है ? यदि आपका जबाब "हाँ" है तो मुझे अपने "नामर्द" होने पर फख्र है, क्योकि मैंने अपनी पत्नी को उसकी बड़ी-बड़ी गलती पर मारने के उद्देश्य से "छुआ" भी नहीं था. एक औरत मात्र कुछ भौतिक वस्तुओं और दौलत के लालच में इतना भी नीचे गिर सकती है कि अपने पति पर पैसों के लिए अश्लील फोटो / वीडियो और दहेज मांगने के झूठे इल्जाम तक लगा देती है.यह मैंने अपने वैवाहिक जीवन के अब तक के अनुभव से जाना है.
क्या आपको यह सब झूठ लगता है ? यदि हाँ, तब एक बार उपरोक्त अब...मेरी माँ को कौन दिलासा देगा ?, मुझे इच्छा मृत्यु की अनुमति मिले और हम तो चले तिहाड़ जेल दोस्तों ! लिंक पढ़ें और फैसला करें कि हमारा लेखन झूठा या सच्चा है. इस लिंक पर आपको मेरे खिलाफ एफ.आई.आर और मेरी गिरफ्तारी का वारंट आदि की फोटो भी मिलेगी. आज कहने को तो शादी को सात साल हो गये मगर पिछले साढ़े तीन साल से अपने मायके में है. उससे पहले भी मेरी पत्नी अपनी जिम्मेदारियों से बचने के लिए अधिंकाश समय मायके में ही रहती थीं. महीने एक-दो या चार-पांच दिन अगर मुड होता था तब मेरे पास रहने आ जाती थी. मैंने एक "सुधार" की "उम्मीद" से इतना समय गुजार दिया,क्योंकि मैंने कहीं पढ़ लिया था कि "प्यार" से तो हैवान को भी "इंसान" बनाया जा सकता है. मगर मैं अपनी पत्नी की दूषित मानसिकता को नहीं बदल पाया. इसका मुझे अफ़सोस है. आज की तारीख में मुझे अपने लगभग साढ़े तीन के बेटे से भी मेरी पत्नी और उसके परिजन मिलवाते नहीं है और मेरे पास केस डालने के लिए पैसे नहीं है.
दोस्तों, लगातार आ रही धमकियों के मद्देनजर ही आज आप सब को बता रहा हूँ कि भविष्य में चाहे किसी भी प्रकार से मेरी मौत (चाहे कोई दुर्घटना हो या हत्या को आत्महत्या का रूप दे दिया जाए ) हो, मेरी मौत के लिए मेरी पत्नी, मेरे सास-ससुर, दो सालियाँ, मेरा साला और मेरा साढू ही जिम्मेदार होंगे. मैंने इस संदर्भ में प्रधानमंत्री से लेकर राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल को और दिल्ली हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक को पत्र लिखें. मगर कहीं से आज तक कोई मदद नहीं मिली है. मुझसे पिछले कुछ समय के दौरान अनजाने में आपके प्रति कोई गलती हो गई हो तो मुझे क्षमा कर देना, क्योंकि इन दिनों मेरा मानसिक संतुलन ठीक नहीं रहता हैं. (क्रमश:) लेखक से फेसबुक पर जुड़ें
वाह क्या बात है थोड़ा छू लेने दो प्रभु को।
जवाब देंहटाएंसुंदर।
बहुत सुंदर और प्रेरक
सार्थक।