दोस्तों,शायद आपको सनद होगा कि मैंने अपनी एक पोस्ट "प्यार करने वाले जीते हैं शान से, मरते हैं शान से" में कहा था. अब मेरे जीवन की आखिर लड़ाई जीवन और मौत के बीच होगी. उसी के अंतर्गत मेरी जैन धर्म की इन दिनों तपस्या चल रही है.
दोस्तों और जैन गुरुओं की कृपया से 20 सितम्बर को पौषध के साथ ही एक पहर पोरसी भी बिना जल पिए करते हुए 40 घंटे का उपवास सही से संपन्न हो गया है और सभी प्रकार की सुख सहायता है. आप सभी का सहयोग और दुआओं का लाभ देने के लिए आपका धन्यवाद करते हुए साधुवाद प्रणाम करता हूँ. और कल के जल पीकर उपवास के साथ ही (सूर्य अस्त के बाद से लेकर सुबह 10 बजे तक) एक पहर "पोरसी" भी बिना जल पिए करते हुए 17 घंटे का उपवास सही से संपन्न हो गया है और सभी प्रकार की सुख सहायता है.
दोस्तों और जैन गुरुओं की कृपया से कल यानि 23 सितम्बर के जल पीकर उपवास के साथ ही (सूर्य अस्त के बाद से लेकर आज सुबह 10 बजे तक पौषध और एक पहर "पोरसी" भी बिना जल पिए करते हुए) 17 घंटे का उपवास सही से संपन्न हो गया है और सभी प्रकार की सुख सहायता है.आप सभी का सहयोग और दुआओं का लाभ देने के लिए आपका धन्यवाद करते हुए साधुवाद प्रणाम करता हूँ.
दोस्तों और गुरुओं की कृपया से कल यानि 26 सितम्बर के जल पीकर उपवास के साथ ही (सूर्य उदय होने के बाद से दो पहर "पौरसी" और सूर्य अस्त के बाद से लेकर आज सुबह 8 बजे तक पौषध और दो "नवकारसी" भी बिना जल पिए करते हुए) 14 घंटे का उपवास सही से संपन्न हो गया है और सभी प्रकार की सुख सहायता है.आप सभी का सहयोग और दुआओं का लाभ देने के लिए आपका धन्यवाद करते हुए साधुवाद प्रणाम करता हूँ.
दोस्तों! एक मित्र ने जानना चाहा हैं कि आप जैन धर्म के उपवास की प्रक्रिया को संक्षिप्त में बताये. जैन धर्म में रखे जाने वाले लगभग सभी व्रतों(उपवास-जो कई प्रकार के होते हैं. जैसे-एकासना, अम्बल, निर्जल उपवास, पौषध आदि) में जिस दिन उपवास करना है. तब उससे पहले दिन के सूर्य अस्त होने के बाद से ही कुछ भी खाना-पीना नहीं होता है. इसके लिए एक मेरा उदाहरण(जिससे समझने में आसानी हो) देखें:-मैंने 25 सितम्बर के सूर्य अस्त (छह बजे) के बाद पानी तक नहीं पिया. फिर 26 सितम्बर को सूर्य उदय होने के बाद ही उबालकर ठंडा किया हुआ पानी पीना होता है. जोकि मैंने दो पहर "पौरसी" करते हुए लगभग साढ़े बारह बजे के बाद पिया. उसके बाद सूर्य अस्त होने के कुछ मिनट पहले से पौषध होने के कारण जैन स्थानक में चला गया था और पौषध के नियमों का पालन किया और बिना पानी पिए ही सुबह साढ़े सात बजे तक जैन स्थानक में रहा. फिर वहाँ से चलने के बाद घर आकर व्रत का "पालना" (व्रत खोलने की प्रक्रिया को कहा जाता है) किया. मैंने 27 सितम्बर को सुबह उठते ही सूर्य उदय होते ही दो "नवकारसी" की प्रतिज्ञा ले ली थी. नोट: एक "नवकारसी" 48 मिनट की होती हैं और एक पहर "पौरसी" लगभग तीन घंटे का होता हैं. वैसे यह समय थोड़ा-बहुत ऊपर नीचे होता रहता है, क्योंकि उस दिन जितने घंटे का दिन होता है, उसको चार से भाग करने पर आने वाले समय की एक पहर पौरसी होती हैं. जैसे-13 घंटे भाग 4 = 3 घंटे :15मिनट
दोस्तों और जैन गुरुओं की कृपया से कल यानि 23 सितम्बर के जल पीकर उपवास के साथ ही (सूर्य अस्त के बाद से लेकर आज सुबह 10 बजे तक पौषध और एक पहर "पोरसी" भी बिना जल पिए करते हुए) 17 घंटे का उपवास सही से संपन्न हो गया है और सभी प्रकार की सुख सहायता है.आप सभी का सहयोग और दुआओं का लाभ देने के लिए आपका धन्यवाद करते हुए साधुवाद प्रणाम करता हूँ.
दोस्तों और गुरुओं की कृपया से कल यानि 26 सितम्बर के जल पीकर उपवास के साथ ही (सूर्य उदय होने के बाद से दो पहर "पौरसी" और सूर्य अस्त के बाद से लेकर आज सुबह 8 बजे तक पौषध और दो "नवकारसी" भी बिना जल पिए करते हुए) 14 घंटे का उपवास सही से संपन्न हो गया है और सभी प्रकार की सुख सहायता है.आप सभी का सहयोग और दुआओं का लाभ देने के लिए आपका धन्यवाद करते हुए साधुवाद प्रणाम करता हूँ.
दोस्तों! एक मित्र ने जानना चाहा हैं कि आप जैन धर्म के उपवास की प्रक्रिया को संक्षिप्त में बताये. जैन धर्म में रखे जाने वाले लगभग सभी व्रतों(उपवास-जो कई प्रकार के होते हैं. जैसे-एकासना, अम्बल, निर्जल उपवास, पौषध आदि) में जिस दिन उपवास करना है. तब उससे पहले दिन के सूर्य अस्त होने के बाद से ही कुछ भी खाना-पीना नहीं होता है. इसके लिए एक मेरा उदाहरण(जिससे समझने में आसानी हो) देखें:-मैंने 25 सितम्बर के सूर्य अस्त (छह बजे) के बाद पानी तक नहीं पिया. फिर 26 सितम्बर को सूर्य उदय होने के बाद ही उबालकर ठंडा किया हुआ पानी पीना होता है. जोकि मैंने दो पहर "पौरसी" करते हुए लगभग साढ़े बारह बजे के बाद पिया. उसके बाद सूर्य अस्त होने के कुछ मिनट पहले से पौषध होने के कारण जैन स्थानक में चला गया था और पौषध के नियमों का पालन किया और बिना पानी पिए ही सुबह साढ़े सात बजे तक जैन स्थानक में रहा. फिर वहाँ से चलने के बाद घर आकर व्रत का "पालना" (व्रत खोलने की प्रक्रिया को कहा जाता है) किया. मैंने 27 सितम्बर को सुबह उठते ही सूर्य उदय होते ही दो "नवकारसी" की प्रतिज्ञा ले ली थी. नोट: एक "नवकारसी" 48 मिनट की होती हैं और एक पहर "पौरसी" लगभग तीन घंटे का होता हैं. वैसे यह समय थोड़ा-बहुत ऊपर नीचे होता रहता है, क्योंकि उस दिन जितने घंटे का दिन होता है, उसको चार से भाग करने पर आने वाले समय की एक पहर पौरसी होती हैं. जैसे-13 घंटे भाग 4 = 3 घंटे :15मिनट