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शनिवार, सितंबर 24, 2011

भगवान महावीर स्वामी की शरण में गया हूँ


दोस्तों,शायद आपको सनद होगा कि मैंने अपनी एक पोस्ट "प्यार करने वाले जीते हैं शान से, मरते हैं शान से" में कहा था. अब मेरे जीवन की आखिर लड़ाई जीवन और मौत के बीच होगी. उसी के अंतर्गत मेरी जैन धर्म की इन दिनों तपस्या चल रही है. 
मेरा कल 20 तारीख को फिर जैन धर्म का उपवास है. जो मैंने थोड़ा ओर कठिन करने का निर्णय किया है. अब तक जल पीकर व्रत कर रहा था. मगर कल का बिना जल भी पिए करने की कोशिश है. जोकि अपने यहाँ की जैन स्थानक में "पौषध" के रूप में होगी. इसलिए आपसे अब परसों यानि 21 तारीख को आपसे वार्तालाप होगी और टिप्पणी करूँगा. वैसे मेरे काफी दिन से उपवास चल रहे हैं, 17 को था अब 20 को फिर 23 को इसी तरह से 26,29, को भी है, इसी क्रम से चलती हुई तपस्या एक नवम्बर को खत्म होगी. अब तक 23 व्रतों की जैन धर्म की तपस्या हो चुकी है. इसके साथ ही और भी बहुत सी तपस्या कर चुका हूँ. मेरे इन दिनों कुछ अच्छे हालात नहीं चल रहे है. इसलिए सब जगह से निराश होने के बाद भगवान महावीर स्वामी की शरण में गया हूँ.
दोस्तों और जैन गुरुओं की कृपया से 20 सितम्बर को पौषध के साथ ही एक पहर पोरसी भी बिना जल पिए करते हुए 40 घंटे का उपवास सही से संपन्न हो गया है और सभी प्रकार की सुख सहायता है. आप सभी का सहयोग और दुआओं का लाभ देने के लिए आपका धन्यवाद करते हुए साधुवाद प्रणाम करता हूँ. और कल के जल पीकर उपवास के साथ ही (सूर्य अस्त के बाद से लेकर सुबह 10 बजे तक) एक पहर "पोरसी" भी बिना जल पिए करते हुए 17 घंटे का उपवास सही से संपन्न हो गया है और सभी प्रकार की सुख सहायता है.
दोस्तों और जैन गुरुओं की कृपया से कल यानि 23 सितम्बर के जल पीकर उपवास के साथ ही (सूर्य अस्त के बाद से लेकर आज सुबह 10 बजे तक पौषध और एक पहर "पोरसी" भी बिना जल पिए करते हुए) 17 घंटे का उपवास सही से संपन्न हो गया है और सभी प्रकार की सुख सहायता है.आप सभी का सहयोग और दुआओं का लाभ देने के लिए आपका धन्यवाद करते हुए साधुवाद प्रणाम करता हूँ.
    दोस्तों और गुरुओं की कृपया से कल यानि 26 सितम्बर के जल पीकर उपवास के साथ ही (सूर्य उदय होने के बाद से दो पहर "पौरसी" और सूर्य अस्त के बाद से लेकर आज सुबह 8 बजे तक पौषध और दो "नवकारसी" भी बिना जल पिए करते हुए) 14 घंटे का उपवास सही से संपन्न हो गया है और सभी प्रकार की सुख सहायता है.आप सभी का सहयोग और दुआओं का लाभ देने के लिए आपका धन्यवाद करते हुए साधुवाद प्रणाम करता हूँ.
     दोस्तों! एक मित्र ने जानना चाहा हैं कि आप जैन धर्म के उपवास की प्रक्रिया को संक्षिप्त में बताये. जैन धर्म में रखे जाने वाले लगभग सभी व्रतों(उपवास-जो कई प्रकार के होते हैं. जैसे-एकासना, अम्बल, निर्जल उपवास, पौषध आदि) में जिस दिन उपवास करना है. तब उससे पहले दिन के सूर्य अस्त होने के बाद से ही कुछ भी खाना-पीना नहीं होता है. इसके लिए एक मेरा उदाहरण(जिससे समझने में आसानी हो) देखें:-मैंने 25 सितम्बर के सूर्य अस्त (छह बजे)  के बाद पानी तक नहीं पिया. फिर 26 सितम्बर को सूर्य उदय होने के बाद ही उबालकर ठंडा किया हुआ पानी पीना होता है. जोकि मैंने दो पहर "पौरसी" करते हुए लगभग साढ़े बारह बजे के बाद पिया. उसके बाद सूर्य अस्त होने के कुछ मिनट पहले से पौषध होने के कारण जैन स्थानक में चला गया था और पौषध के नियमों का पालन किया और बिना पानी पिए ही सुबह साढ़े सात बजे तक जैन स्थानक में रहा. फिर वहाँ से चलने के बाद घर आकर व्रत का "पालना" (व्रत खोलने की प्रक्रिया को कहा जाता है) किया. मैंने 27 सितम्बर  को सुबह उठते ही सूर्य उदय होते ही दो "नवकारसी" की प्रतिज्ञा ले ली थी. नोट: एक "नवकारसी" 48 मिनट की होती हैं और एक पहर "पौरसी" लगभग तीन घंटे का होता हैं. वैसे यह समय थोड़ा-बहुत ऊपर नीचे होता रहता है, क्योंकि उस दिन जितने घंटे का दिन होता है, उसको चार से भाग करने पर आने वाले समय की एक पहर पौरसी होती हैं. जैसे-13 घंटे भाग 4 = 3 घंटे :15मिनट 

शुक्रवार, अप्रैल 29, 2011

प्यार करने वाले जीते हैं शान से, मरते हैं शान से

दोस्तों, आज 23 अप्रैल को अपनी पत्नी को भेजी ईमेल प्रकाशित कर रहा हूँ. मेरे हालतों के सुसराल के अलावा कुछ लोग भी जिम्मेदार है.जिनका बहुत जल्द उनके नाम भी सार्वजनिक कर दूंगा,क्योंकि रिश्वत लेने वालों का सार्वजनिक नाम करने से मेरी जान को और भी खतरे हो जायेंगे. जब आज यह हालत है कि-न जिंदा हूँ और न मौत आ रही है.तब कम से कुछ लोगों का नाम बताने में कोई हर्ज नहीं है.जिन्होंने मात्र रिश्वत और अपनी कार्यशैली के कारण मेरे लिए ऐसे हालत पैदा कर दिए हैं. आज रिश्वत लेने वालों के खिलाफ सर पर कफन बाँध कर लड़ने की जरूरत है. आज की पोस्ट में न्याय व्यवस्था और वकीलों की गिरती नैतिकता के सन्दर्भ में अपने केस की जज के नाम खुला पत्र भी संलग्न है. जो कोरियर की मदद से मैंने 27 अप्रैल को भेजा था क्योंकि 28 अप्रैल को कोर्ट में मेरी पेशी थीं. मगर डिप्रेशन की बीमारी के चलते पहुँच नहीं सकता था. आप से निवेदन है उपरोक्त पत्र एक बार जरुर पढ़ें और क्या मैंने उपरोक्त पत्र लिखकर कोई गलती की है.  
सच्चा प्यार करने वाले जीते हैं 
शान से और मरते हैं शान से
20 अप्रैल 2011 के बाद जो कदम उठाऊंगा वो सब मज़बूरी में उठाया गया कदम होगा. चाहे वो 20 मई 2011 से अन्न का त्याग हो या 20 जून 2011 से फलों (कुटू का आटा, चिप्स, सामक के चावल आदि) और विशुध्द जल (चाय, कोफ़ी और दूध आदि) का त्याग हो यानि "जैन" धर्म की तपस्या या  "संथारा*" हो. अगर 29 जुलाई 2011 तक जीवित बचा तो खुद को पुलिस को सौंपना हो.सच्चा प्यार करने वाले जीते है शान से और मरते हैं शान से. अगर फिर भी जीवित बचा और भाईयों ने मेरा साथ देने से इंकार किया. तब 20 अक्तूबर 2011 को "संसारिक जीवन" का त्याग करना. यह सब कार्य मज़बूरीवश ही करूँगा. आज भी अपनी 10 मई 2009 की बात पर अटल हूँ कि-आज अगर तुम मुझे ठुकराकर गई तो जिदंगी-भर कभी अपनी शर्तों पर हासिल नहीं कर पायोंगी. मेरी शर्तों पर तुम कभी भी मेरे साथ रह सकती हो और मगर जब मैं चाहूँगा तब ही हमारा जरुर "पुर्नमिलन" होगा. शायद तुमको याद हो.
 *नोट : संथारा ग्रहण करने वाला व्यक्ति अपनी मृत्यु होने तक अपने मुंह से अन्न और जल नहीं लेता है. संसारिक जीवन का त्याग-जैन साधू बन जाना.
 
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