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गुरुवार, दिसंबर 01, 2011

यह प्यार क्या है ?

ब भी प्यार की बात होती है सब लोग सिर्फ एक लड़की और एक लड़के में होने वाले आकर्षण को ही प्यार मान लेते हैं. परन्तु प्यार वो सुखद अनुभूति है जो किसी को देखे बिना भी हो जाती है. एक बाप प्यार करता है अपनी औलाद से, पति करता है पत्नी से, बहन करती है भाई से, यहाँ कौन ऐसा है जो किसी न किसी से प्यार न करता हो. चाहे वह किसी भी रूप में क्यों न हो, प्यार को कुछ सीमित शब्दों में परिभाषित नहीं किया जा सकता.
प्यार फुलों से पूछो जो अपनी खुशबु को बिखेरकर कुछ पाने की चाह नही करता, प्यार क्या है यह धरती से पूछो जो हम सभी को पनाह और आसरा देती है. इसके बदले में कुछ नही लेती, प्यार क्या है आसमान से पूछो जो हमे अहसास दिलाता है कि -हमारे सिर पर किसी का आशीर्वाद भरा हाथ है. प्यार क्या है सूरज की गर्मी से पूछो. प्यार क्या है प्रकृति के हर कण से पूछो  जवाब मिल जायेगा. प्यार क्या है सिर्फ एक अहसास है जो सबके दिलों में धडकता है. प्यार एक ऐसा अहसास है जिसे शब्दों से बताया नहीं जा सकता, आज पूरी  दुनिया प्यार पर ही जिन्दा है, प्यार न हो तो ये जीवन कुछ भी नहीं है. प्यार को शब्दों मैं परिभाषित नहीं किया जा सकता, क्योंकि अलग- 2 रिश्तों के हिसाब से  प्यार की अलग-2 परिभाषा होती है. प्यार की कोई एक परिभाषा देना बहुत मुश्किल है. यदि आपके पास कोई एक परिभाषा हो तो आप बताओ ? 
प्यार की परिभाषा नहीं दी जा सकती है, क्योंकि प्यार को अनुभव तो कर सकते है. लेकिन बता नहीं सकते जैसे-गूंगे को गुड खिला दो तब गूँगा गुड की मिठास को जान जायेगा.मगर उसको अगर पूछो तब वह बता नहीं सकता है. ठीक इसी तरह प्यार है. प्यार का मतलब अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग होता है. इसलिए प्यार को एक परिभाषा में बांधना मुश्किल है. आप प्यार को एक लगाव कह सकते है. एक अशक्ति ही है प्यार. धार्मिक लोग उसे मोह  कहते है. प्यार के बारे शेक्सपियर ने कुछ ऐसा लिखा/कहा था कि Love contains no love.......love lies between 2 legs only. प्यार..... प्यार नहीं होता है प्यार केवल दो पैरों के बीच निहित है.
प्रेम अर्थात प्यार:-प्रेम का सही मायने मे अर्थ सबके प्रति लगाव जो निस्वार्थ भाव से किया गया हो। परमात्मा से प्रेम करना समस्त मानवता से प्रेम करने के जैसा है। सबके प्रति अच्छी दृष्टि रखने से आप सदा प्रेमयुक्त रह सकेंगे। यह आशा मत रखिये कि-दुसरे आप से प्यार करे एवं आप पर ध्यान दे। इसके बजाय आप दूसरो से प्यार करे एवं उनका ध्यान रखे। जब आप दूसरो से प्यार करने लगेंगे तब दुसरे आप से नफरत करना छोड देंगे। शत्रु से छुटकारा पाने का सही उपाय है कि उसे अपना मित्र बना ले। हम जिससे प्रेम करते है हमारा स्वरुप एवं व्यक्तित्व वैसा ही बन जाता है। सबके प्रति समान स्नेह रखने से आप धैर्य का जीवन जी सकते है। जो प्रेम किसी को नुक़सान पहुचाये वह प्रेम है ही नही। जितना प्रेम देंगे उतना प्रेम पाएंगे, जितना प्रेम अधिक होगा उसे देना उतना ही सहज हो जाएगा।
प्यार को समझाना थोडा कठिन है लेकिन इसका सीधा मतलब ये है कि-प्यार जैसी कोई चीज अस्तित्व में है ही नहीं. जिसे हम प्यार कहते है. वो तो एक लगाव ही है. वो एक मोह है. जिसकी वजह से माया, लालच, लोभ जैसे कष्ट पैदा होते हैं. प्यार को अपनापन कह सकते है. वाह! क्या कहने है? किसी ने क्या खूब पक्तियां कही है कि-प्यार एक अहसास है, एक ऐसा एहसास जिसने लाखों लोगों के सपने संजोये, लाखों मुर्दा दिलों को जीने की राह दिखाई....... एक ऐसा एहसास जिसने लाखों लोगों को जीते जी मार दिया, वे ना जी सके और ना ही मर सके, बस एक जिन्दा लाश बनकर रह गए......प्यार जो पूजा भी है...... प्यार जो जिन्दा इंसान की मौत का कारण भी है और उसका कफन भी है... प्यार हरेक के लिए कुछ अलग, कुछ जुदा, कुछ खट्टा और कुछ मीठा है. कुछ लोग मोहब्बत करके हो जाते हैं बर्बाद, कुछ लोग मोहब्बत करके कर देते हैं बर्बाद. 
प्यार के अनेक रूप होते है जैसे-प्यार, प्रेम, आकर्षण, त्याग, बलिदान, तपस्या, दया, सम्मान, विश्वास, अहसास, स्नेह, जिंदगी, सजा, ईनाम, कला, जनून, कलंक, पूजा, कफन, बदनामी, समर्पण, अंधा, सौदर्य, दोस्ती, सच्चाई, मिलन, हवस, डर, वासना, इंसानियत, समाज, ईश्वर, ममता, पागलपन, तकलीफ, मौत, इच्छा, देखभाल, धोखा, नशा, दर्द, समझौता, शहर, मुसीबत, स्वप्न, खतरा, हथिहार, बीमारी, लडूडू, दवा, इबारत, दीवानापन, जिंदगानी, जहर, माता-पिता, जन्नत, मंजिल, हार-जीत, खेल, तन्हाई, जवानी, तोहफ़ा, जादू, नाज-नखरे, उपहार, चमत्कार आदि प्यार के ही कुछ रूप है. प्यार एक आजाद पंछी है. जो पूरे आसमां में स्वतंत्र उड़ता है. जो किसी के रोके रुकता नहीं है. प्यार एक आग का दरिया है जो डूबकर पार किया जाता है. प्यार एक कठिन डगर है जिसपर कोई साहसी ही चल सकता है.
प्यार जितना खुबसूरत शब्द है यह उतना ही इंसान को अच्छा भी बनाता है.प्यार जीना सिखाता है. क्या यह प्यार है? जब आपका आंसू किसी और की आँख में आये. वो प्यार है. प्यार जो हर पल आपका ख्याल रखे वो प्यार है. प्यार जो खुद भूखा रहकर पहले आपको खिलाये वो प्यार है. प्यार जो रात-रात भर जागकर आपको सुलाए वो प्यार है. जो अगर चोट आपको लगे तब दर्द उसको कहूँ या किसी दूसरे को हो वो प्यार है और हम ऐसे प्यार की अहमियत नहीं समझ पाते हैं. प्यार न तो दिल का चैन है, न दिल का रोग. प्यार निभाना उन लोगो के लिए कठिन नहीं है, जो सच्चे दिल से प्यार करते है. प्यार एक अनमोल रत्न है. जिसने इसकी परख कर ली, वो जिन्दगी में हर पल खुश और जो परख न कर पाया वो गम में जीते जी जिन्दा लाश बन जाता है. प्यार क्या है ? क्या जानते है ? कैसे होता है ? कितनी सारी बाते है ? प्यार पूजा है. प्यार भगवान् का ही दूसरा नाम है. करते हम प्यार की बात है, लेकिन प्यार से ही दूर भागते है.
          प्यार, जिंदगी की सबसे बड़ी सजा है और ईनाम भी. बस कर्म सबके अपने-अपने होते है. प्यार किसे सजा के रूप में मिलता है और किसे ईनाम के रूप में.
प्यार कुछ पाने का नाम नहीं-प्यार में सिर्फ दिया जाता है कुछ पाने की भावना रखना प्यार नहीं स्वार्थ ही कहलाता है. अत: प्यार को कोई परिभाषित नहीं कर सकता हैं. प्यार को परिभाषित करना एक असंभव कार्य है, क्योंकि प्यार अनन्त है.

शुक्रवार, अप्रैल 29, 2011

प्यार करने वाले जीते हैं शान से, मरते हैं शान से

दोस्तों, आज 23 अप्रैल को अपनी पत्नी को भेजी ईमेल प्रकाशित कर रहा हूँ. मेरे हालतों के सुसराल के अलावा कुछ लोग भी जिम्मेदार है.जिनका बहुत जल्द उनके नाम भी सार्वजनिक कर दूंगा,क्योंकि रिश्वत लेने वालों का सार्वजनिक नाम करने से मेरी जान को और भी खतरे हो जायेंगे. जब आज यह हालत है कि-न जिंदा हूँ और न मौत आ रही है.तब कम से कुछ लोगों का नाम बताने में कोई हर्ज नहीं है.जिन्होंने मात्र रिश्वत और अपनी कार्यशैली के कारण मेरे लिए ऐसे हालत पैदा कर दिए हैं. आज रिश्वत लेने वालों के खिलाफ सर पर कफन बाँध कर लड़ने की जरूरत है. आज की पोस्ट में न्याय व्यवस्था और वकीलों की गिरती नैतिकता के सन्दर्भ में अपने केस की जज के नाम खुला पत्र भी संलग्न है. जो कोरियर की मदद से मैंने 27 अप्रैल को भेजा था क्योंकि 28 अप्रैल को कोर्ट में मेरी पेशी थीं. मगर डिप्रेशन की बीमारी के चलते पहुँच नहीं सकता था. आप से निवेदन है उपरोक्त पत्र एक बार जरुर पढ़ें और क्या मैंने उपरोक्त पत्र लिखकर कोई गलती की है.  
सच्चा प्यार करने वाले जीते हैं 
शान से और मरते हैं शान से
20 अप्रैल 2011 के बाद जो कदम उठाऊंगा वो सब मज़बूरी में उठाया गया कदम होगा. चाहे वो 20 मई 2011 से अन्न का त्याग हो या 20 जून 2011 से फलों (कुटू का आटा, चिप्स, सामक के चावल आदि) और विशुध्द जल (चाय, कोफ़ी और दूध आदि) का त्याग हो यानि "जैन" धर्म की तपस्या या  "संथारा*" हो. अगर 29 जुलाई 2011 तक जीवित बचा तो खुद को पुलिस को सौंपना हो.सच्चा प्यार करने वाले जीते है शान से और मरते हैं शान से. अगर फिर भी जीवित बचा और भाईयों ने मेरा साथ देने से इंकार किया. तब 20 अक्तूबर 2011 को "संसारिक जीवन" का त्याग करना. यह सब कार्य मज़बूरीवश ही करूँगा. आज भी अपनी 10 मई 2009 की बात पर अटल हूँ कि-आज अगर तुम मुझे ठुकराकर गई तो जिदंगी-भर कभी अपनी शर्तों पर हासिल नहीं कर पायोंगी. मेरी शर्तों पर तुम कभी भी मेरे साथ रह सकती हो और मगर जब मैं चाहूँगा तब ही हमारा जरुर "पुर्नमिलन" होगा. शायद तुमको याद हो.
 *नोट : संथारा ग्रहण करने वाला व्यक्ति अपनी मृत्यु होने तक अपने मुंह से अन्न और जल नहीं लेता है. संसारिक जीवन का त्याग-जैन साधू बन जाना.
 
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