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सोमवार, मार्च 25, 2013

यदि आपको क्रोध आता है तो जरुर पढ़े/देखें/सुनें ?

दोस्तों ! कहा जाता है कि क्रोध आदमी के विवेक को खा जाता है.यदि आपने नीचे लिखें लिंकों को ध्यान से सुन लिया तो मुझे उम्मीद है. भविष्य में आपको क्रोध नहीं आएगा और यदि आया भी कम आएगा या क्रोध आने पर आप बहुत मुस्करायेंगे. ऐसा मुझे विश्वास है. यह कार्यक्रम उत्तम नगर में ही हुआ था. इसमें मेरी अनेक स्थान पर फोटो और प्रश्न भी है और जबाब है. मेरे पास सी.डी के अनुसार चार भाग है. मगर यहाँ यह आठ भाग में है. इसने मुझे "डिप्रेशन" की बीमारी से उबरने में भी काफी मदद की थी. इस कैसेट से प्राप्त ज्ञान से अपनी पत्नी के झूठे दहेज के केसों ( धारा-498A, 406 के तहत एफ.आई.आर.नं.138/2010 दिनांक:13/05/2010 थाना-मोतीनगर,दिल्ली ) में फंसाए जाने पर तिहाड़ जेल में एक महीना(आठ फरवरी से सात मार्च 2012) बहुत आसानी से व्यतीत कर पाया था. वैसे जैन धर्म में बलिदान, क्रोध और त्याग आदि पर बहुत अच्छा साहित्य है. मैंने खूब पढ़ें भी थें और अपने जीवन में उनका अमल भी किया. मगर अचानक मेरी पत्नी के बदले हुए व्यवहार और उसके परिजनों द्वारा द्वेष भावना, बदला लेने की भावना, लालचवश किये झूठे केसों ने मुझे बहुत अधिक तोड़ दिया था. उसके कारण मुझे बहुत गहरा आघात लगा था.
1. खुशनुमा जीवन जीने की कला http://youtu.be/qAWGMZrzYiU
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खुशनुमा जीवन जीने की कला http://youtu.be/7wxY4WsApWI
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खुशनुमा जीवन जीने की कला http://youtu.be/B-4aIVwaShA
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खुशनुमा जीवन जीने की कला http://youtu.be/-tk6nF4II-o
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खुशनुमा जीवन जीने की कला http://youtu.be/F2u8rgd3J9I
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खुशनुमा जीवन जीने की कला http://youtu.be/khFSf3WQqRM
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खुशनुमा जीवन जीने की कला http://youtu.be/5FyLU14F9Ow
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खुशनुमा जीवन जीने की कला http://youtu.be/c0juHM3dTwQ 


सोमवार, जुलाई 16, 2012

क्या आज महिलाएं खुद मार खाना चाहती हैं ?

 भारत देश में ऐसा राष्टपति होना चाहिए जो देश के आम आदमी की बात सुने और भोग-विलास की वस्तुओं का त्याग करने की क्षमता रखता हो. ऐसा ना हो कि देश का पैसा अपनी लम्बी-लम्बी विदेश यात्राओं में खर्च करें. इसका एक छोटा-सा उदाहरण माननीय राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल जी है. जहाँ पर किसी पत्र का उत्तर देना भी उचित नहीं समझा जाता है. इसके लिए मेरा उपरोक्त उदाहरण देखें. जो मैंने पिछले दिनों लिखा था. जिसका Ref no.( RPSEC/E/2012/06761) dated 09/05/2012 है.
माननीय राष्ट्रपति जी, मैंने दिनांक 6/6/2011(स्पीड पोस्ट रसीद नं. ED270500410IN) को आपको पत्र भेजकर इच्छा मृत्यु की मांग की थी और वोमंस सेल द्वारा परेशान किये जाने पर भी मैंने दिनांक 11/3/2010(स्पीड पोस्ट रसीद नं. ED919796753IN) को आपको पत्र भेजकर मदद करने की मांग की थी. अब लगभग एक साल और दो साल मेरे भेजे पत्र को हो चुके है. आपके यहाँ से कोई मदद नहीं मिली. क्या अब मैं अपना जीवन अपने हाथों से खत्म कर लूँ. कृपया मुझे जल्दी से जबाब दें.
 मैंने जब अपने वकीलों या अनेक व्यक्तियों को अपने केसों के बारें में और अपने व्यवहार के बारे में बताया तब उनका यहीं कहना था कि आपको अपनी पत्नी के इतने अत्याचार नहीं सहन करने चाहिए थें और उसका खूब अच्छी तरह से मारना चाहिए था. लगभग छह महीने पहले आए एक फोन पर मेरी पत्नी का कहना था कि-अगर तुमने कभी मारा होता तो तुम्हारा "घर" बस जाता. क्या मारने से घर बसते हैं ? क्या आज महिलाएं खुद मार खाना चाहती हैं ? क्या कोई महिला बिना मार खाए किसी का घर नहीं बसा सकती है ? इसके साथ एक और बिडम्बना देखें-मेरे ऊपर दहेज के लिए मारने-पीटने और अश्लील फोटो / वीडियो बनाने के आरोपों के केस दर्ज है और एक महीना जेल में भी रहकर आ चूका हूँ. मेरी पत्नी के पास कोई अश्लील फोटो/वीडियो के सबूत नहीं है. केस दर्ज होने के डेढ़ साल एक दिन फोन कहा था कि मैंने नहीं लिखवाया वो वकील ने लिखवाया है , क्योकि हमारा केस ही आपके खिलाफ दर्ज ही नहीं हो रहा था. फिर आदमी कहीं पर तो अपना गुस्सा तो निकलेगा. पाठकों शायद मालूम हो हमारे देश में एक पत्नी द्वारा अपने पति और उसके परिजनों के खिलाफ एफ.आई.आर. लिखवाते समय कोई सबूत नहीं माँगा जाता है. इसलिए आज महिलाये दहेज कानून को अपने सुसराल वालों के खिलाफ "हथिहार" के रूप में प्रयोग करती है और मेरी पत्नी तो यहाँ तक कहती है कि मेरे भाइयों आदि को फंसाने के लिए "वुमंस सैल" वालों ने उकसाया था और एक दिन जब मैं (लेखक) अपनी बिमारी की वजह से "पेशी" पर नहीं गया था. तब उन्होंने मेरी पत्नी का "रेप" तक करने की कोशिश की थी. अब आप मेरी पत्नी का क्या-क्या सच मानेंगे. यह आप बताए. मैं यह बहुत अच्छी तरह से जानता हूँ कि एक दिन झूठे का मुहँ काला होगा और सच्चे का बोलबाला होगा. मगर अभी तो पुलिस ने मेरे खिलाफ "आरोप पत्र" यानि चार्जशीट भी दाखिल नहीं की है. दहेज मांगने के झूठे केसों को निपटाने में लगने वाला "समय" और "धन" क्या मुझे वापिस मिल जायेगा. पिछले दिनों ही दिल्ली की एक निचली अदालत का एक फैसला अखवार में इसी तरह का आया है. उसमें पति को अपने आप को "निर्दोष" साबित करने में "दस" साल लग गए कि उसने या उसके परिवार ने अपनी पत्नी को दहेज के लिए कभी परेशान नहीं किया और ना उसको प्रताडित किया. क्या हमारे देश की पुलिस और न्याय व्यवस्था सभ्य व्यक्तियों को अपराधी बनने के लिए मजबूर नहीं कर रही है ? मैंने ऐसे बहुत उदाहरण देखे है कि जिस घर में पत्नी को कभी मारा पीटा नहीं जाता, उसी घर की पत्नी अपने पति के खिलाफ कानून का सहारा लेती है , जिस घर में हमेशा पति पत्नी को मारता रहता है. वो औरत कभी भी पति के खिलाफ नहीं जाती,  क्योकि उसे पता है कि यह अगर अपनी हद पार कर गया तो मेरे सारे परिवार को ख़तम कर देगा , यह समस्या केवल उन पतियों के साथ आती है. जो कुछ ज्यादा ही शरीफ होते है.
जब तक हमारे देश में दहेज विरोधी लड़कों के ऊपर दहेज मांगने के झूठे केस दर्ज होते रहेंगे. तब तक देश में से दहेज प्रथा का अंत सम्भव नहीं है. आज मेरे ऊपर दहेज के झूठे केसों ने मुझे बर्बाद कर दिया. आज तक कोई संस्था मेरी मदद के लिए नहीं आई. सरकार और संस्थाएं दहेज प्रथा के नाम घडयाली आंसू खूब बहाती है, मगर हकीकत में कोई कुछ नहीं करना चाहता है.सिर्फ दिखावे के नाम पर कागजों में खानापूर्ति कर दी जाती है. आप भी अपने विचार यहाँ पर व्यक्त करें. लेखक से फेसबुक पर जुड़ें

रविवार, जुलाई 15, 2012

क्या महिलाओं को पीटना मर्दानगी की निशानी है ?



आज वैसे तो 99.98% लोगों का मीडिया और ऑफ कैमरा के सामने कहना है कि अपनी पत्नी को पीटते रहना चाहिए नहीं तो सिर पर सवार हो जाती है. उन्हें ज्यादा प्यार और सम्मान हजम नहीं होता है, जैसा तुम्हारे साथ हुआ है. आप भी अपने विचार व्यक्त करें. दोस्तों, मेरी जिंदगी का 20 जून सबसे बुरा दिन है. जब मैंने सोचा क्या था और हो क्या गया ? आज से सात साल पहले 20 जून 2005 के दिन ही मैंने दहेज विरोधी होने के कारण अपने माँ-पिता की मर्जी के बिना कोर्ट मैरिज की थी. बिना दहेज लिए शादी करने के बाद भी मेरी पत्नी व उसके परिजनों द्वारा दिनांक 13/05/2010 को दर्ज एफ.आई.आर नं. 138/2010 थाना-मोतीनगर, दिल्ली के तहत अपनी पत्नी की अश्लील फोटो / वीडियो बनाने के और दहेज मांगने के झूठे आरोपों के कारण आठ फरवरी से लेकर सात मार्च 2012 तक जेल में रहकर आ चूका हूँ. जिसके कारण अब मेरा मानसिक संतुलन ठीक नहीं रहता है और मेरा सारा कार्य बंद हो गया है. डिप्रेशन की बीमारी के कारण किसी भी कार्य में "मन" भी नहीं लगता है. लेखन आदि कार्य के चिंतन और अध्ययन भी नहीं कर पाता हूँ. आज मेरे पास जजों को "सच" बताने के लिए वकीलों की मोटी-मोटी फ़ीस देने के लिए भी नहीं है. मैं भगवान से दुआ करता हूँ कि कभी मेरे किसी भी दोस्त के साथ ऐसे हालात ना बनाये, क्योंकि आज मेरे सामने कुआँ है और पीछे खाई है. मैं आज ना जिन्दा हूँ और ना मर सकता हूँ. बस एक चलती-फिरती लाश बनकर रह गया हूँ.
दोस्तों, क्या महिलाओं को पीटना मर्दानगी की निशानी है ? यदि आपका जबाब "हाँ" है तो मुझे अपने "नामर्द" होने पर फख्र है, क्योकि मैंने अपनी पत्नी को उसकी बड़ी-बड़ी गलती पर मारने के उद्देश्य से "छुआ" भी नहीं था. एक औरत मात्र कुछ भौतिक वस्तुओं और दौलत के लालच में इतना भी नीचे गिर सकती है कि अपने पति पर पैसों के लिए अश्लील फोटो / वीडियो और दहेज मांगने के झूठे इल्जाम तक लगा देती है.यह मैंने अपने वैवाहिक जीवन के अब तक के अनुभव से जाना है.
क्या आपको यह सब झूठ लगता है ? यदि हाँ, तब  एक बार उपरोक्त अब...मेरी माँ को कौन दिलासा देगा ?मुझे इच्छा मृत्यु की अनुमति मिले और  हम तो चले तिहाड़ जेल दोस्तों ! लिंक पढ़ें और फैसला करें कि हमारा लेखन झूठा या सच्चा है. इस लिंक पर आपको मेरे खिलाफ एफ.आई.आर और मेरी गिरफ्तारी का वारंट आदि की फोटो भी मिलेगी. आज कहने को तो शादी को सात साल हो गये मगर पिछले साढ़े तीन साल से अपने मायके में है. उससे पहले भी मेरी पत्नी अपनी जिम्मेदारियों से बचने के लिए अधिंकाश समय मायके में ही रहती थीं. महीने एक-दो या चार-पांच दिन अगर मुड होता था तब मेरे पास रहने आ जाती थी. मैंने एक "सुधार" की "उम्मीद" से इतना समय गुजार दिया,क्योंकि मैंने कहीं पढ़ लिया था कि "प्यार" से तो हैवान को भी "इंसान" बनाया जा सकता है. मगर मैं अपनी पत्नी की दूषित मानसिकता को नहीं बदल पाया. इसका मुझे अफ़सोस है. आज की तारीख में मुझे अपने लगभग साढ़े तीन के बेटे से भी मेरी पत्नी और उसके परिजन मिलवाते नहीं है और मेरे पास केस डालने के लिए पैसे नहीं है. 
दोस्तों, लगातार आ रही धमकियों के मद्देनजर ही आज आप सब को बता रहा हूँ कि भविष्य में चाहे किसी भी प्रकार से मेरी मौत (चाहे कोई दुर्घटना हो या हत्या को आत्महत्या का रूप दे दिया जाए ) हो, मेरी मौत के लिए मेरी पत्नी, मेरे सास-ससुर, दो सालियाँ, मेरा साला और मेरा साढू ही जिम्मेदार होंगे. मैंने इस संदर्भ में प्रधानमंत्री से लेकर राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल को और दिल्ली हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक को पत्र लिखें. मगर कहीं से आज तक कोई मदद नहीं मिली है. मुझसे पिछले कुछ समय के दौरान अनजाने में आपके प्रति कोई गलती हो गई हो तो मुझे क्षमा कर देना, क्योंकि इन दिनों मेरा मानसिक संतुलन ठीक नहीं रहता हैं. (क्रमश:) लेखक से फेसबुक पर जुड़ें
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