हम हैं आपके साथ

कृपया हिंदी में लिखने के लिए यहाँ लिखे.

आईये! हम अपनी राष्ट्रभाषा हिंदी में टिप्पणी लिखकर भारत माता की शान बढ़ाये.अगर आपको हिंदी में विचार/टिप्पणी/लेख लिखने में परेशानी हो रही हो. तब नीचे दिए बॉक्स में रोमन लिपि में लिखकर स्पेस दें. फिर आपका वो शब्द हिंदी में बदल जाएगा. उदाहरण के तौर पर-tirthnkar mahavir लिखें और स्पेस दें आपका यह शब्द "तीर्थंकर महावीर" में बदल जायेगा. कृपया "सच का सामना" ब्लॉग पर विचार/टिप्पणी/लेख हिंदी में ही लिखें.
रिश्वत लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
रिश्वत लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शुक्रवार, अप्रैल 29, 2011

प्यार करने वाले जीते हैं शान से, मरते हैं शान से

दोस्तों, आज 23 अप्रैल को अपनी पत्नी को भेजी ईमेल प्रकाशित कर रहा हूँ. मेरे हालतों के सुसराल के अलावा कुछ लोग भी जिम्मेदार है.जिनका बहुत जल्द उनके नाम भी सार्वजनिक कर दूंगा,क्योंकि रिश्वत लेने वालों का सार्वजनिक नाम करने से मेरी जान को और भी खतरे हो जायेंगे. जब आज यह हालत है कि-न जिंदा हूँ और न मौत आ रही है.तब कम से कुछ लोगों का नाम बताने में कोई हर्ज नहीं है.जिन्होंने मात्र रिश्वत और अपनी कार्यशैली के कारण मेरे लिए ऐसे हालत पैदा कर दिए हैं. आज रिश्वत लेने वालों के खिलाफ सर पर कफन बाँध कर लड़ने की जरूरत है. आज की पोस्ट में न्याय व्यवस्था और वकीलों की गिरती नैतिकता के सन्दर्भ में अपने केस की जज के नाम खुला पत्र भी संलग्न है. जो कोरियर की मदद से मैंने 27 अप्रैल को भेजा था क्योंकि 28 अप्रैल को कोर्ट में मेरी पेशी थीं. मगर डिप्रेशन की बीमारी के चलते पहुँच नहीं सकता था. आप से निवेदन है उपरोक्त पत्र एक बार जरुर पढ़ें और क्या मैंने उपरोक्त पत्र लिखकर कोई गलती की है.  
सच्चा प्यार करने वाले जीते हैं 
शान से और मरते हैं शान से
20 अप्रैल 2011 के बाद जो कदम उठाऊंगा वो सब मज़बूरी में उठाया गया कदम होगा. चाहे वो 20 मई 2011 से अन्न का त्याग हो या 20 जून 2011 से फलों (कुटू का आटा, चिप्स, सामक के चावल आदि) और विशुध्द जल (चाय, कोफ़ी और दूध आदि) का त्याग हो यानि "जैन" धर्म की तपस्या या  "संथारा*" हो. अगर 29 जुलाई 2011 तक जीवित बचा तो खुद को पुलिस को सौंपना हो.सच्चा प्यार करने वाले जीते है शान से और मरते हैं शान से. अगर फिर भी जीवित बचा और भाईयों ने मेरा साथ देने से इंकार किया. तब 20 अक्तूबर 2011 को "संसारिक जीवन" का त्याग करना. यह सब कार्य मज़बूरीवश ही करूँगा. आज भी अपनी 10 मई 2009 की बात पर अटल हूँ कि-आज अगर तुम मुझे ठुकराकर गई तो जिदंगी-भर कभी अपनी शर्तों पर हासिल नहीं कर पायोंगी. मेरी शर्तों पर तुम कभी भी मेरे साथ रह सकती हो और मगर जब मैं चाहूँगा तब ही हमारा जरुर "पुर्नमिलन" होगा. शायद तुमको याद हो.
 *नोट : संथारा ग्रहण करने वाला व्यक्ति अपनी मृत्यु होने तक अपने मुंह से अन्न और जल नहीं लेता है. संसारिक जीवन का त्याग-जैन साधू बन जाना.
 
Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...