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शुक्रवार, अप्रैल 22, 2011

मेरी आखिरी लड़ाई जीवन और मौत की बीच होगी.

 दोस्तों, आज 20 अप्रैल को अपनी पत्नी को भेजी ईमेल प्रकाशित कर रहा हूँ. अब मेरी जिदंगी के शायद थोड़े ही दिन बचे हुए है, क्योंकि मुझे इतना गहरा सदमा लगा है. चाहकर भी उबर नहीं  पा रहा  हूँ .मेरा शरीर अब एक चलती-फिरती जिंदा लाश बनकर रह गया है.खाने को मन नहीं करता है और कभी- कभी थोड़ा बहुत हलक से जबरदस्ती उतर भी लेता हूँ. मेरे हालतों के सुसराल के अलावा कुछ लोग भी जिम्मेदार है.जिनका बहुत जल्द उनके नाम भी सार्वजनिक कर दूंगा,क्योंकि रिश्वत लेने वालों का सार्वजनिक नाम करने से मेरी जान को और भी खतरे हो जायेंगे. जब आज यह हालत है कि-न जिंदा हूँ और न मौत आ रही है.तब कम से कुछ लोगों का नाम बताने में कोई हर्ज नहीं है.जिन्होंने मात्र रिश्वत और अपनी कार्यशैली के कारण मेरे लिए ऐसे हालत पैदा कर दिए हैं.
 अब मेरी आखिरी लड़ाई जीवन 
और मौत की बीच होगी
नमीषा* जी, आज आपको अपने पति का घर को छोड़े हुए पूरे दो साल हो चुके हैं. इन दो सालों में आपने हर वो कार्य किया, जो एक सभ्य लड़की नहीं करती हैं. मेरे अधिकारों का हनन किया. मेरे साथ ही मेरे परिवार की महिलाओं पर और पुरुषों पर झूठे व गंदे आरोप लगाकर लगाकर अपमानित किया. इन दो सालों में क्या हासिल किया आपने. सिर्फ परमपिता परमेश्वर की नजरों में बुरी बनने के सिवाय क्या प्राप्त कर लिया आपने? 
  आज 20/04/2011 से मैं अपने अधिकारों की लड़ाई के लिए जो क़ानूनी लड़ाई लडूंगा. उसके अंजाम की तुम खुद जिम्मेदार होगी. आपने ही यह क़ानूनी लड़ाई की शुरूयात की है. आपकी लड़ाई में और मेरी लड़ाई में सिर्फ इतना फर्क होगा. तुमने हर जगह झूठ का सहारा लेकर केस दर्ज करवाए है. मैं अपनी लड़ाई में ठोस सबूतों के साथ ही कडुवा सच न्यायलय और समाज में दिखाऊंगा.
          मैं अपनी क़ानूनी लड़ाई में आपको किसी प्रकार की शारीरिक चोट नहीं पहुँचाऊगा. मगर आप व आपके पिता और जीजा मोहित कपूर को पूरी छूट है. चाहे अपने मामा के लड़कों से गोली मरवा देना या आपके पापा अपने क्राइम बांच के ए.सी.पी दोस्त से मेरा फर्जी इनकाउन्टर करवाए या आपके जीजा मुझे जान से मरवाए या मेरे ऑफिस में आग लगवाए. बाकी........वो सब जिसकी अक्सर तुम धमकी देती थीं. मुझे शारीरिक चोट पहुँचाने के लिए सब चीजों की पूरी छुट है. 
              एक बात का बस धयान रखना मुझे कभी भी कुछ हो जाने पर भी मेरे मृतक शरीर को हाथ भी मत लगाना. अब जो क़ानूनी लड़ाई(सच्चाई के साथ) लडूंगा, उसमें अपनी जान की बाजी लगा दूंगा. अगर तुम्हारी व तुम्हारे माता-पिता की पैसों की हवस है. तब मेरा मृतक शरीर बेच लेना. 19 व 26 अप्रैल 2010 को कीर्ति नगर थाने की वोमंस सैल में कर्ज पर लेकर 1.25 लाख रूपये सिर्फ बच्चे के भविष्य को देखते हुए दे रहा था. आपने मेरा कैरियर को चौपट कर ही दिया है. अब सिर्फ झूठ और सच की लड़ाई रह गई है. आज ज्यादा कुछ कहने को मेरे पास नहीं हैं. 
                        अगर तुम इतनी सच्ची हो तो क्या "आपकी कचहरी" (किरन बेदी का कार्यक्रम) में आ सकती हो या मीडिया और समाज के सामने स्वस्थ बहस कर सकती हो और अपने नार्को विश्लेषण, ब्रैन मैपिंग या पोलीग्राफ जाँच करवा सकती हो? मैं सच्चाई को उजागर करने के उपरोक्त सभी जांचों को करवाने के लिए तैयार हूँ. लोगों को भी पता चल जायेगा कौन सच्चा है और कौन झूठा है? दूध का दूध और पानी का पानी भी हो जायेगा. किसने किसके ऊपर कितने अत्याचार किये हैं? 
            हर एक सभ्य व्यक्ति की देश और समाजहित में अत्याचार की सजा दिलवाने की नैतिक जिम्मेदारी होती हैं. कभी भी एक सभ्य व्यक्ति कानूनों का दुरूपयोग नहीं करता है. बल्कि उनका पालन करता है. आप किसी के मात्र कह देने से या सीखा देने से कैसे झूठा केस दर्ज करवाने के लिए तैयार हो गई? यह मुझे समझ नहीं आता है. आप(एम्.बी.ए) तो मुझसे(मैट्रिक) ज्यादा पढ़ी-लिखी थीं. आपके शब्दों में "अनपढ़ और ग्वार" था. फिर आप एक के बाद एक गलती क्यों करती रही? काफी बातें जो कहना चाहता था 18 अप्रैल 2011 को आपके आये फ़ोन की बातचीत में कह और समझा चूका हूँ. 
                  अगर तुमको किसी निर्दोष के जेल में जाने के बाद ही संतुष्टि मिलती हैं. तब अगर मैं 29 जुलाई 2011 तक जीवित बचा तो स्वंय पुलिस को सौंप दूंगा. 
                 अब तुम राष्ट्रपति, सी.बी.आई, सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के साथ ही समाज और मीडिया में दिखाने के लिए FIR में लगाये सभी आरोपों के सबूतों को और अपनी वो अश्लील फोटो और वीडियों तैयार कर लो जिनका तुमने मेरे ऊपर झूठा इल्जाम(बनाने का) लगाया है. तुम कहती थी कि-यू.पी के बदमाशों से पांच हजार रूपये में तुमको मरवाया जा सकता है. तब किस बात की देर कर रही हो? 
         आज मैं यह सार्वजनिक घोषणा कर रहा हूँ. आज के बाद मेरी किसी दुर्घटना में या किसी भी तरीके से अगर मौत होती है. उसकी संपूर्ण रूप से मेरी पत्नी, सास-सुसर, दोनों सालियाँ और मेरे साले के साथ ही मोहित कपूर (साली का पति) और उसके परिवार के सदस्यों की जिम्मेदारी होगी, क्योंकि मेरे जीवन के सिर्फ यहीं लोग दुश्मन है. अब मेरी आखिरी लड़ाई जीवन और मौत की बीच होगी. जिसकी सूचनाएं तुमको मीडिया द्वारा मिलती रहेंगी.*नोट: नमीषा एक बदला हुआ नाम है.

5 टिप्‍पणियां:

  1. यह किस का दर्द है... नाम नहीं लिखा आपने .. क्या महज एक कल्पना से रची गयी रचना है याँ फिर सत्य बात ... जो भी हो खराब लगा ..एक दम्पति के बीच फैला वैमनष्य

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  2. आदरणीय डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति जी आप ने कहा… यह किस का दर्द है... नाम नहीं लिखा आपने .. क्या महज एक कल्पना से रची गयी रचना है याँ फिर सत्य बात ... जो भी हो खराब लगा ..एक दम्पति के बीच फैला वैमनष्य

    आदरणीय डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति जी लगता हैं आपने मेरा कोई भी ब्लॉग ध्यान से पढ़ा ही नहीं है. अगर ऐसा होता तब आपके शब्दों और टिप्पणी की परिभाषा कुछ ओर ही होती. अगर ध्यान देखें और पढ़ें, तब किसका दर्द है और उसका क्या नाम है या एक महज कल्पना से रची गयी रचना है या फिर सत्य बात...इसका जवाब आपको खुद पता होता. मेरे कई ब्लॉग जरुर है और आपके ब्लॉग जैसे सुंदर व कठिन शब्दों से परिपूर्ण भी नहीं है यानि गागर में सागर भी नहीं भरा है. मगर आपको हाथ-जोड़कर प्रार्थना करता हूँ कि-सरल (बातचीत) भाषा की शैली लिखे शब्दों का एक बार मन से अवलोकन जरुर करें. फिर उन ब्लोगों पर आपको कोई महज कल्पना लगी हो उसके बारे में अवगत कराएँ. आपकी शिक्षा और मेरी शिक्षा बहुत बड़ा अंतर है, जितना सुंदर आप लिखती है या कहती हैं. उसके बराबर तो यह नाचीज़ कुछ भी नहीं है. किसी व्यक्ति की विचारधारा को मात्र एक पोस्ट या एक ब्लॉग पर लिखी विचारधारा को देखकर नहीं समझा जा सकता है. कोई भी इंसान संपूर्ण नहीं होता मगर कोशिश जरुर कर सकता है. जैसे फूलों के साथ काँटों का होना स्वाभिक है. ठीक उसी प्रकार मुझ में भी अनेकों अवगुण हो सकते हैं. मैं उन अवगुणों को कैसे दूर करने की कोशिश करूँगा. जब तक आप जैसे बुध्दिजीवी वर्ग के लोग या दोस्त अवगत नहीं कराएँगे. अगर आपके पास ज्यादा समय न हो तो कृपया आप "सच का सामना" की अब तक प्रकाशित केवल चार पोस्टों और ब्लॉग का उपशीर्षक को जरुर ध्यान से पढने का समय निकले. अगर आपके पास समय ही न हो और मेरे विचारों से अवगत होना चाहती हैं. तब आप मुझे फ़ोन कर सकती हैं. मैं आर्थिक रूप से फ़ोन करने में असमर्थ हूँ. कितना सच बोलता हूँ और कितना लिखता हूँ आपको पता चल जायेगा. हाथ कंगन को आरसी क्या, पढ़े-लिखे को फारसी क्या. आपने जैसी टिप्पणी की अगर ऐसी टिप्पणी मुझे रोज मिले तो मैं अपनी डिप्रेशन की बीमारी से भी उबर सकता हूँ, क्योंकि टिप्पणियों का जवाब देने से बुरे दिनों का ख्याल नहीं आएगा. आप द्वारा दी टिप्पणी का हार्दिक धन्यबाद! आपको पढ़कर बुरा लगा उसके लिए क्षमाप्रार्थी हूँ. एक दम्पति के बीच फैला वैमनष्य के जिम्मेदारों को सजा देने के लिए हमारे भारत देश में कोई कानून नहीं है, इसका मुझे बहुत अफ़सोस है.

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  3. इन दहेज के कानून की आड लेने वाले झूठे लोगों से बव के रहना दोस्त।
    ऐसे लोगों को सिर्फ़ पैसा चाहिए सिर्फ़ पैसा।

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  4. संसार में ऐसे लोग भी हैं! यह तो एकदम गलत है कि कोई मैट्रिक पास है तो उसे गँवार कह दिया जाय, वह भी तब जब घर का सदस्य ही ऐसा है।

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  5. ये एक कल्पना नहीं सच है इनका दर्द अन्दुरुनी है ना की बाहरी आप लोग इस चीज को नहीं समझ पाओगे

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